वर्धन वंश या पुष्यभूति वंश या हर्षवर्धन | VARDHAN OR PUSHYABHUTI DYNASTY IN HINDI OR HARSHA-VARDHANA IN HINDI (606-647) :
वर्धन वंश या पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति थे। स्वतंत्र शासक प्रभाकर वर्धन हुए इन्होंने महाराजाधिराज, परम भटनागर और प्रताप सिंह जैसी उपाधि धारण किया। इनके दो पुत्र थे – राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन और पुत्री राज्यश्री थी। राज्यश्री का विवाह ग्रहवर्मा से हुआ हुआ। प्रभाकर के समय हूण का आक्रमण हुआ। राज्यवर्धन के साथ मिलकर युद्ध में सफलता प्राप्त किया। इसी समय मालवा के शासक देवगुप्त ने ग्रहवर्मा की हत्या कर दिया और राज्यश्री को किला में बंद कर दिया। बड़ा भाई राज्यवर्धन ने देवगुप्त का वध कर दिया और लौटते समय देवगुप्त के मित्र शशांक ने छल से राज्यवर्धन का वध कर डाला। विषम परिस्थिति में छोटा भाई हर्षवर्धन 16 वर्ष की आयु में 606 में थानेश्वर (कुरुक्षेत्र के निकट) की गद्दी पर बैठा और 606 में ही एक संवत संवत चलाया जो हर्ष संवत के नाम से विख्यात है। थानेश्वर वर्तमान समय मे हरियाणा के करनाल जिले में स्थित थानेसर नाम से जाना जाता है। हर्ष सामने दो लक्ष्य था शशांक को दंडित करना और राज्यश्री को गद्दी पर बैठाना। दिवाकर मित्र के प्रयास से राज्यश्री को विद्यांचल की जंगल से वापस लाकर पुनः कन्नौज की गद्दी पर बैठाया। राजश्री को कोई पुत्र ना होने के कारण सत्ता हर्षवर्धन के हाथों में आ गया।
हर्षवर्धन ने वर्धन वंश की दूसरी राजधानी कन्नौज को बनाया।
अब बंगाल की ओर ध्यान दिया तब तक शशांक चल बसे। बंगाल को जीतने हेतु असम या कामरूप के शासक भास्कर वर्मा के साथ मित्रता स्थापित किया और बंगाल पर आधिपत्य कायम किया तथा बंगाल को दो भागों में विभक्त किया –
पुर्वी बंगाल
पश्चिमी बंगाल
पूर्वी बंगाल पर भास्कर वर्मन और पश्चिम बंगाल पर हर्षवर्धन का आधिपत्य कायम हुआ।
इसके पश्चिम की ओर ध्यान दिया क्योंकि गुजरात स्थित वल्लभी के शासक ध्रुवसेन या ध्रुवभट्ट आक्रमक स्थिति को अपनाएं हुए था। हर्षवर्धन विषम परिस्थिति पाकर ध्रुवभट्ट के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया। अपनी पुत्री की शादी करके पश्चिम भारत से निजात पाया।
पश्चिम भारत के पश्चात दक्षिण की ओर ध्यान दिया। चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय और हर्षवर्धन के बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ (630-634 ई०)। इस युद्ध में हर्षवर्धन की हार हुई और पुलकेशिन द्वितीय जीता। इसकी जानकारी रविकृति के ऐहोल अभिलेख से मिलती है। रविकृति पुलकेशिन द्वितीय के दरबारी कवि थे। पुलकेशिन द्वितीय ने परमेश्वर की उपाधि धारण किया।
हर्षवर्धन के समय उड़ीसा के बौद्ध विद्वान जयसेन को 80 गांव की आमदनी दान में दिया था। हर्षवर्धन चीन में भी अपना दूत भेजा और बदले में चीनी दो दूत हर्ष के दरबार में आए।
ह्वेनसांग (Hsüan-tsang)
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग (Hsüan-tsang) 636 ई० हर्षवर्धन के दरबार में आया था। ह्वेनसांग को यात्रियों का राजकुमार नीति का पंडित और वर्तमान शाक्यमुनि कहा गया ह्वेनसांग की प्रमुख कृति सीयूकी है। ह्वेनसांग का दूसरा नाम युवान च्वांग (Yuhn-Chohng) है। इनकी जीवनी इनके मित्र ही हूईली (Huili) ने लिखा। इनके के समय कन्नौज में बौद्ध महासभा का आयोजन किया गया। इस महासभा में 20 राज्यों के राजा ने भाग लिया और 20 दिनों तक चली जिसकी अध्यक्षता ह्वेनसांग ने किया। ह्वेनसांग को महायान देव और मोक्षदेव की उपाधि दिया गया। हर्षवर्धन प्रत्येक 5 वर्ष प्रश्न प्रयाग के संगम पर एक सभा का आयोजन करता था। छठी सभा में जो 642-43 ईस्वी में हुआ था इस सभा में ह्वेनसांग ने भाग लिया था। ये सभा 75 दिनों तक चली थी। इस सभा को महामोक्ष परिसर कहा गया है। ह्वेनसांग ने प्रयाग से कांची की यात्रा किया था।
हर्षवर्धन ने मलाला तथा वाराणसी में शिव मंदिर का निर्माण करवाया। इन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में 100 गांव की आमदनी दान में दे दिया था। उस समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति शीलभद्र थे हर्षवर्धन विद्वान थे। हर्षवर्धन तीन नाटकों की रचना किया प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानंद। हर्ष के दरबार में बाणभट्ट, मतंग दिवाकर तथा मयूर रहते थे । बाणभट्ट ने कादंबरी की रचना किया था। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मगुप्त हर्षवर्धन के समय था। इन्होंने ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त दीया और बतलाया की की 0 को 0 से भाग देने पर 0 प्राप्त होता है।
हर्षवर्धन को शिलादित्य एवं कविंद्र कहां गया है। हर्षवर्धन के समय भूमि कर 1/6 था। हर्ष के अधीनस्थ शासकों को महाराज अथवा महा सामंत कहा जाता था। हर्ष के मंत्रिमंडल के मंत्री को सचिव या आत्मज कहा जाता था। हर्ष का साम्राज्य भुक्ति (प्रांत), विषयों (जिला), पथक (तहसील) एवं ग्राम (गांव) में विभक्त था। सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। हर्ष के काल में मथुरा सूती वस्त्र उत्पादन में प्रसिद्ध था। हर्ष के समय आधुनिक जल पंप का प्रयोग होता था। हर्ष के प्रधानमंत्री का नाम अवंती और महा सेनापति का नाम सिंहनाद था। पुलिसकर्मी को चाट अथवा भाट कहलाते थे। पुलिस विभाग के अधिकारी दंडपाशिक तथा दांडिक कहलाते थे। हर्ष को अंतिम हिंदू सम्राट कहा जाता है।