Monday, 1 June 2020

सैन्धव सभ्यता की उतपत्ति


आश्चर्य एवं खेद का विषय है कि इतनी विस्तृत सभ्यता होने के बावजूद भी इस सभ्यता के उद्‌भव और विकास के सम्बन्ध में विद्वानों में भारी मतभेद है । अभी तक की खोजों से इस प्रश्न पर कोई भी प्रकाश नहीं पड़ सका है, कारण कि इस सभ्यता के अवशेष जहाँ कहीं भी मिले है अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में ही मिले है ।

सर जॉन मार्शल, गार्डन चाइल्ड, सर मार्टीमर ह्वीलर आदि पुराविदों की मान्यता है कि सैन्धव सभ्यता की उत्पत्ति मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता से हुई । इन विद्वानों के अनुसार सुमेरियन सभ्यता सैन्धव सभ्यता से प्राचीनतर थी ।

इन दोनों सभ्यताओं में कुछ समान विशेषतायें देखने को मिलती है जो इस प्रकार है:

(i) दोनों नगरीय (Urban) सभ्यतायें है ।

(ii) दोनों के निवासी कांसे तथा ताँबे के साथ-साथ पाषाण के लघु उपकरणों का प्रयोग करते थे ।

(iii) दोनों के भवन कच्ची तथा पक्की ईंटों से बनाये गये थे ।

(iv) दोनों सभ्यताओं के लोग चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाते थे ।

(v) दोनों को लिपि का ज्ञान था ।

उपर्युक्त समानताओं के आधार पर ह्वीलर ने सैन्धव सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता का एक उपनिवेश (Colony) बताया है । किन्तु गहराई से विचार करने पर यह मत तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता । कारण कि दोनों सभ्यताओं में इन बाह्य समानताओं के होते हुए भी कुछ मौलिक विषमतायें भी हैं जिनकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते ।

सैन्धव सभ्यता की नगर-योजना सुमेरियन सभ्यता की अपेक्षा अधिक सुव्यवस्थित है । दोनों के बर्तन, उपकरण, मूर्तियाँ, मुहरें आदि आकार-प्रकार में काफी भिन्न है । यह सही है कि दोनों ही सभ्यताओं में लिपि का प्रचलन था । किन्तु दोनों ही लिपियाँ परस्पर भिन्न हैं ।

जहां सुमेरियन लिपि में 900 अक्षर हैं, वहाँ सैन्धव लिपि में केवल 400 अक्षर मिलते हैं । इन विभिन्नताओं के कारण दोनों सभ्यताओं को समान मानना समीचीन नहीं होगा । पुनश्च यह मत उस समय प्रतिपादित किया गया जबकि भारतीय उपमहाद्वीप में प्राक् हड्प्पाई सांस्कृतिक परिवेश का ज्ञान हमें नहीं था ।

किन्तु अब इस क्षेत्र में प्राक् हड़प्पाई पुरास्थलों से प्रचुर सामग्रियों के मिल जाने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जाता है कि सैन्धव सभ्यता की जड़ें भारत भूमि में ही जमी थीं और इसके लिये किसी बाह्य प्रेरणा की आवश्यकता नहीं थी ।

यह पूर्वगामी संस्कृतियों के क्रमिक विकास का परिणाम है जिसके तार मेहरगढ के नवपाषाणिक स्थल से जुड़े हैं । अतः हम सैन्धव सभ्यता को सुमेरियन उपनिवेशीकरण का परिणाम नहीं कह सकते है । राव के अनुसार सिन्धु सभ्यता के विकास का श्रेय उसी संस्कृति को दिया जा सकता है जो कालक्रम की दृष्टि से उससे प्राचीन हो तथा उसके साथ-साथ विद्यमान रही हो, जिसमें परिवर्तन के क्रमिक चरण स्पष्ट ही तथा वे तत्व हो जो सैन्धव सभ्यता को विशिष्टता प्रदान करते है ।

प्रो॰ टी॰ एन॰ रामचन्द्रन, के॰ एन॰ शास्त्री, पुसाल्कर, एस॰ आर॰ राव आदि विद्वान् वैदिक आर्यों को ही इस सभ्यता का निर्माता मानते हैं । परन्तु अनेक विद्वान् इसे स्वीकार नहीं करते क्योंकि उनके अनुसार दोनों ही सभ्यताओं के रीति-रिवाजों, धार्मिक तथा आर्थिक परम्पराओं में पर्याप्त विभिन्नतायें दिखाई देती हैं ।

सैंधव तथा वैदिक सभ्यताओं के मुख्य अन्तर इस प्रकार है:

(a) वैदिक आर्यों की सभ्यता ग्रामीण एवं कृषि प्रधान थी जबकि सैंधव सभ्यता नगरीय तथा व्यापार-व्यवसाय प्रधान थी । आर्यों के मकान घास-फूस तथा बांस की सहायता से बनते थे किन्तु सैन्धव लोग इसके लिये पक्की ईंटों का प्रयोग करते थे ।

(b) सैंधव सभ्यता के निर्माता पाषाण तथा काँसे के उपकरणों का प्रयोग करते थे और लोहे से परिचित नहीं थे । इसके विपरीत वैदिक आयों को लोहे का ज्ञान था ।

(c) वैदिक आर्य इन्द्र, वरुण आदि देवताओं के उपासक थे वे यज्ञ करते थे तथा लिहर-पूजा और मूर्ति-पूजा के विरोधी थे । परन्तु सैधव लोग मुख्य रुप ले मातादेवी तथा शिव के पूजक थे, लिड्गों की पूजा करते थे तथा मूर्ति-पूजा के समर्थक थे ।

(d) आर्यों का प्रिय पशु अश्व था जिसकी सहायता से वे युद्धों में विजय प्राप्त करते थे । किन्तु सैंधव लोग अश्व से परिचित नहीं थे । सिन्धु सभ्यता के लोग व्याघ्र तथा हाथी से भी परिचित थे क्योंकि उनकी मुद्राओं पर इन पशुओं का अंकन हुआ है । इसके विपरीत वैदिक आर्यों को इनका ज्ञान नहीं थी ।

(e) आर्यों के धार्मिक जीवन में गाय की महत्ता थी । इसे ‘अघ्न्या’ कहा गया है । इसके विपरीत सैधव लोग वृषभ को पवित्र एवं पूज्य मानते थे ।

(f) सैन्धव निवासियों के पास अपनी एक लिपि थी, जबकि आर्य लिपि से परिचित नहीं लगते । उनकी शिक्षा प्रणाली मौखिक थी ।

यह प्रस्तावना नितान्त तथ्यहीन है कि सिन्धु सभ्यता नागर एवं साक्षर थी तथा वैदिक सभ्यता ग्रामीण, पशुचारी एवं निरक्षर । डा॰ जी॰ सी॰ पाण्डे ने हाल ही में प्रकाशित अपने ग्रन्थ वैदिक संस्कृति में इस बात का उल्लेख किया है कि ऋक्‌संहिता में कम से कम 85 बार ‘पुर’ का उल्लेख हुआ है जबकि ग्राम मात्र नौ बार तथा ‘ग्राम्य’ एक बार आता है । “न तो हड़प्पा सभ्यता मात्र नागरिक थी, न वैदिक सभ्यता मात्र पशुपालक-यायावरीय । दोनों ही सभ्यतायें देश-काल में विस्तार और प्राविधिक विकास की दृष्टि से समान है । स्थूल रूप से उनमें एक ही विशाल सभ्यता के विविध पक्ष, प्रदेश या अवस्थायें देखी जा सकती हैं” ।

वेदों में लेखन परम्परा के अभाव का कारण यह नहीं है कि आर्य लिपि से अपरिचित थे । इतना विस्तृत गद्य, व्याकरण, मानक भाषा, बिना लिपि के संभव नहीं है । वेद रचना निरक्षर समाज में नहीं हुई । लिपि के अभाव का कारण यह है कि रहस्यात्मक परमज्ञान के लिये लेखन उपयोगी न होकर वाधक माना गया है । जहाँ तक मूर्ति पूजा, लिंग पूजा, योनि पूजा आदि का सम्बन्ध है, हड़प्पा सभ्यता में इनका प्रचलन भी असंदिग्ध रूप से नहीं सिद्ध किया जा सकता ।

उल्लेखनीय है कि लोथल, कालीबंगन आदि कुछ सैन्धव स्थलों से यज्ञीय वैदिया प्राप्त होती है । इसी प्रकार मोहनजोदड़ो से मिट्‌टी की बनी घोड़े की आकृति, लोथल से घोड़े की तीन मृण्मूर्तिया तथा सुरकोटड़ा से घोड़े की हड्डियाँ प्राप्त हो चुकी हैं ।

लोथल के घोड़े का दायाँ ऊपरी चौघड् (Upper Molar) भी मिलता है जिसके दांत बिल्कुल आधुनिक अश्व के दांत जैसे ही हैं । समुद्री यात्रा, जलयान आदि से संबंधित विवरण यह सिद्ध करते है कि इस सभ्यता में नगरीय तत्व पर्याप्त मात्रा में विद्यमान थे । वैदिक साहित्य में जो भौतिक सभ्यता मिलती है वही सिख में भी है ।

सैधव सभ्यता की खुदाई से भिन्न-भिन्न जातियों के अस्थिपंजर प्राप्त होते हैं । इनमें प्रोटो- आस्ट्रलायड (काकेशियन) भूमध्यसागरीय, मंगोलियन तथा अल्पाइन-इन चार जातियों के अस्थिपंजर है । मोहेनजोदड़ों के निवासी अधिकांशत भूमध्य-सागरीय थे । अधिकांश विद्वानों की धारणा है कि सैंधव मध्यता के निर्माता द्रविड़ भाषी लोग थे ।

सुनीति कुमार चटर्जी ने भाषाविज्ञान के आधार पर यह सिद्ध किया है कि ऋग्वेद में जिन दास-दस्युओं का उल्लेख हुआ है वे द्रविड़ भाषी थे और उन्हें ही सिन्ध सभ्यता के निर्माण का श्रेय दिया जाना चाहिये । किन्तु यह निष्कर्ष भी सदिग्ध है । यदि द्रविड सैन्धव सभ्यता के नाल होते तो इस सभ्यता का कोई अवशेष द्रविड़ क्षेत्र से अवश्य मिलता । सैन्धव सभ्यता के विस्तार वाले भाग से ब्राहुई भाषा के साक्ष्य नहीं मिलते । बलूचिस्तान की ब्राहुई भाषा को द्रविड़ भाषा के साथ संबद्ध करने का कोई पुष्ट आधार नहीं है ।

स्ट्रअर्ट पिग्गट, अल्चिन, स्ट्रअर्ट पिग्गट, अल्चिन, फेयरसर्विस, जे॰ एफ॰ देल्स आदि कुछ पुराविदों का विचार है कि सैन्धव सभ्यता की उत्पत्ति दक्षिणी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध तथा पंजाब (पाकिस्तान) और उत्तरी राजस्थान (भारत) के क्षेत्रों में इसके पूर्व विकसित होने वाली ताम्र-पाषाणिक संस्कृतियों-मुंडीगाक, मोरासी घुंडई, जाब, क्वेटा, कुल्ली, नाल, आमरी, कोटदीजी, हडप्पा तथा कालीबगँन से हुई ।

इन ग्रामीण संस्कृतियों के लोग कृषि कर्म तथा पशुपालन करते थे और विविध अलंकरणों वाले मिट्टी के बर्तन तैयार करते थे । खुदाई से पशु तथा नारी मूर्तियों भी मिलती है । अनुमान किया जा सकता है कि बलूचिस्तान के लोग मातादेवी की पूजा तथा लिड्गोपासना भी करते रहें होंगे । उल्लेखनीय है कि इन संस्कृतियों के पात्रों पर प्राप्त कुछ चित्रकारियाँ, जैसे पीपल की पत्ती, हिरण, त्रिभुज आदि सैन्धव पात्रों पर भी प्राप्त होती है ।

कोटदीजी, कालीबंगन, बनावली तथा हड़प्पा की खुदाइयों में प्राप्त शाक सैन्धवकालीन स्तर स्पष्टतः नगरीकरण के प्रमाण प्रस्तुत करते है । नगर नियोजन, उत्तर-दक्षिण दिशा में निर्मित भवन, बस्ती का दुर्गीकरण, गढ़ी तथा निचले नगर की अवधारणा, पकी ईटों का प्रयोग, अन्नागारों का निर्माण आदि के साक्ष्य मिलते है । बनावली के अवशेषों से प्रौढ़ हड़प्पन विकास कम और अधिक स्पष्ट हो जाता है । प्रारम्भ से ही यहाँ के निवासी अपने मकान सीधी दिशा में बनाते थे । यही की खुदाई में पत्थर का एक बटखरा भी मिलता है ।

अतः इतनी अधिक सामग्रियों के मिल जाने के वाद सैन्धव सभ्यता के लिए किसी पाश्चात्य एशियाई प्रेरणा को ढूँढने की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती तथा यह स्पष्ट हो जाता है कि इस सभ्यता की जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में ही जमी थी ।

नगर का विकास सुदृढ़ ग्रामीण आधार के बिना सम्भव नहीं है और यह आधार निश्चित रूप से सिन्ध, पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान की समृद्ध ग्रामीण संस्कृतियों ने प्रदान किया था । सम्भव है भविष्य की खुदाइयों में इन क्षेत्रों से और अधिक स्पष्ट प्रमाण प्राप्त हो जाय । अतः इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि सैन्धव सभ्यता का विकास इसी क्षेत्र की पूर्ववर्ती सभ्यताओं से हुआ है ।

एक नवीन खोज, जिसके जनक पुरातत्ववेत्ता प्रो॰ मीडो हैं, में दावा किया गया है कि सैन्धव सभ्यता को प्राचीनतम मानना क भ्रान्ति है । भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता सरस्वती नदी के तट पर सिन्धु सभ्यता के पूर्व (लगभग 3300 ई॰ पू॰) फली-फूली तथा विकसित हुई ।

अब वेदों में वर्णित सरस्वती का अस्तित्व उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर प्रमाणित हो चुका है । इस नदी का बहाव उस समय हिमालय से लेकर वर्तमान हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक था । राखीगढ़ी के उत्खनन से इस धारणा को बल मिला है ।

Tuesday, 26 May 2020

भारत छोड़ो आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन अथवा अगस्त क्रांति 1942

समय- 9 अगस्त 1942
करो या मरो का नारा- 8 अगस्त 1942
भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया- मुंबई अधिवेशन में
मुंबई अधिवेशन(1942)के अध्यक्ष-मौलाना अब्दुल कलाम आजाद
भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ का कारण-क्रिप्स मिशन की असफलता और जापानी आक्रमण की संभावना
भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व-अरुणा आसफ अली, डॉक्टर राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण
भारत छोड़ो आंदोलन- महात्मा गांधी का तीसरा मुख्य आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन का अन्य नाम-अगस्त क्रांति
भारत छोड़ो आंदोलन की अवधि-लगभग 2 महीने
सी.आर.फार्मूला-भारत विभाजन की योजना 1944
भारत छोड़ो आंदोलन की तुलना- 1857 की क्रांति से
भारत छोड़ो आंदोलन का परिणाम-असफल

भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अंतिम महा लड़ाई थी
जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया था क्रिप्स मिशन के खाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीय को अपने छले जाने का एहसास हुआ
दूसरी ओर दूसरे विश्व युद्ध के कारण परिस्थितियां अत्याधिक गंभीर होती जा रही थी जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर वर्मा मलाया पर कब्जा कर भारत की ओर बढ़ने लगा
दूसरी और युद्ध के कारण वस्तुओं के दाम बेतहाशा पढ़ रहे थे जिसे अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ भारतीय जनमानस में असंतोष व्याप्त होने लगा था
जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई 1942 को गांधी जी ने हरिजन में लिखा अंग्रेजों भारत को जापान के लिए मत छोड़ो बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रुप से छोड़ जाओ
भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि

1942 की अनोखी जनक्रांति को और उसे जन्म देने वाली शक्तियों को समझने के लिए भारत के अंदर 1934 के बाद होने वाले राजनीतिक घटनाक्रम और उसके विकास को समझना आवश्यक है
1934 में सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त हुआ 1935 में ब्रिटेन की संसद में संघवाद और प्रांतीय स्वायत्तता के सिद्धांत पर आधारित लेकिन भारतीय जनता को वास्तविक सत्ता प्रदान करने वाले संविधान कानून को पारित किया
इसे पारित करने के उद्देश्य लिनलिथगो ने निम्नलिखित शब्दों मां स्पष्ट किया अधिनियम 1935 तो इसीलिए पारित किया गया क्योंकि हम समझते थे कि भारत पर अंग्रेजों का प्रथम प्रभुत्व बनाए रखने का सर्वोत्तम उपाय यही है इस सुधार के द्वारा सरकार का उद्देश्य उदापंथियों को संतुष्ट करना और कांग्रेस के अंदर मतभेद और आंतरिक कलह पैदा करना था
इस उद्देश्य में सरकार सफल होते दिखाई दी लेकिन 1935 के चुनाव को लेकर कांग्रेस के दक्षिणपंथ और वामपंथ आमने-सामने खड़े हो गए
1935 का सुधार कानून अस्वीकार्य है इस पर कांग्रेस में मतभेद नहीं था चुनावों में राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु भाग लेना चाहिए इस पर भी आम सहमति थी लेकिन चुनाव जीतने पर सरकार बनाई जाए या नहीं इस प्रश्न पर वामपंथ का जवाब नहीं था
वामपंथियों की समझ को पेश करते हुए नेहरु ने कहा की कांग्रेस सरकार बनाकर किसी-न-किसी रूप में दमनकारी साम्राज्यवादी सत्ता का हिस्सा बन जाएगी और जनता का शोषण करने में उसका सहयोग करेगी
उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की सत्ता में साझेदारी से जन आंदोलन का क्रांतिकारी चरित्र समाप्त हो जाएगा
वामपंथ का यह तर्क दक्षिणपंथ को अमान्य था राजेंद्र प्रसाद का कहना था कि कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए सत्ता में भागीदारी नहीं चाह रहा है
उनका कहना था कि वर्तमान परिस्थितियों में 1935 के संविधान को नकारना संभव नहीं था और एक मात्र विकल्प यही रह जाता है कि हम इस पर नियंत्रण स्थापित कर इसका उपयोग अपने ढंग से करें
अंत में कांग्रेस ने निर्वाचनों में भाग लिया और निर्वाचन के उपरांत 8 प्रांतों में सरकारों का गठन किया इन प्रांतों में सरकार ने 28 महीने तक काम किया
सरकार बनाने के निर्णय के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए गांधी जी ने हरिजन में लिखा यह पद इसलिए स्वीकार किए गए हैं ताकि हम जान सके कि जिस गति से हम अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे हैं उसमें इनसे तेजी आती है या नहीं
सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद के दौर की मुख्य विशेषता कांग्रेस के अंदर और कांग्रेस के बाहर वामपंथी आंदोलन और प्रभाव में होने वाली वृद्धि है
कांग्रेस के अंदर जयप्रकाश नारायण ,युसूफ मेहरअली ,अच्युत पटवर्धन ,अशोक मेहता, संपूर्णानंद जैसे नेताओं ने समाजवाद को आगे बढ़ाया और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की
इस के संस्थापकों में अस्पष्ट को भ्रमित जुझारू राष्ट्रवाद से लेकर मार्क्सवादी वैज्ञानिक समाजवाद की प्रयाप्त स्पष्ट हिमायत तक सम्मिलित थी
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने राष्ट्रीय आंदोलन के भावी विकास में योगदान किया उसका सार इसमें निहित है कि कांग्रेसी कार्यकर्ता इस बात के लिए बाध्य हुए की जुझारू कृषि सुधार के मुद्दों ,औद्योगिक मजदूरों की समस्याओं ,रजवाड़ों के भविष्य और जनजागृती और संघर्ष के गैर-गांधीवादी तरीकों के प्रश्न पर विचार करें
यह संयोग नहीं कहा जा सकता है कि गांधीवादी तरीके की 1942 की क्रांति में सी.एम.पी.के नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही
1934 के उपरांत किसान सभा, ट्रेड यूनियन आंदोलन ,लेखकों के संगठन, छात्र संगठन, देसी राज्य की जनता में बदलाव आया और यह सब भावी राष्ट्रीय संघर्ष के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हुआ जिस प्रकार भारत को बिना उनके सूचना दिए और उनकी सहमती के बिना युद्धरत घोषित कर दिया
उसके विरोध में कांग्रेस ने प्रांतीय सरकारों से त्याग पत्र दे दिया उसके बाद भी कांग्रेस का रुख ब्रिटेन के लिए परेशानी पैदा करने या युद्ध में बाधा डालने का नहीं था
गांधीजी और कांग्रेस हाईकमान की यह कोशिश थी कि उसका भारत सरकार से कोई समझौता हो जाए
समझौते की न्यूनतम शर्ते थी- युद्ध के पश्चात भारत को स्वतंत्र करने का वचन और तात्कालिक तौर पर केंद्र में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना
कांग्रेस के द्वारा यह समझौतावादी रूख में उस समय अपनाया जा रहा था जबकि सुभाष चंद्र बोस और कम्युनिस्ट सहित वामपंथियों का बड़ा हिस्सा यह मानता था की साम्राज्यवादी युद्ध के स्वाधीनता प्राप्ति के लिए सुनहरा अवसर प्रदान किया है और उसका पूरा पूरा लाभ उठाना चाहिए
कांग्रेस में प्रभावी दक्षिणपंथी नेतृत्व के चलते ऐसा नहीं हो सका दूसरी ओर सरकार के अडियल रुख के कारण किसी प्रकार का समझौता भी नहीं हो पाया
सरकार अपनी शर्तों पर समझौता चाहती थी यह शर्तें लार्ड लिनलिथगो के अगस्त प्रस्ताव के रूप में सामने आई
अगस्त प्रस्ताव स्वीकार करने योग्य नहीं था इस कारण से उसे भारत के राजनीतिक दलों ने अस्वीकार कर दिया और सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत सत्याग्रह का मार्ग अपनाया गया
विपिनचंद्र के शब्दों में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दो उद्देश्य थे एक स्तर पर तो यह भारतीय जनता की राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति था और दूसरे स्तर पर इसके द्वारा ब्रिटिश सरकार को एक और अवसर दिया जा रहा था कि वह भारत की मांगों को स्वीकार कर ले
1941 का वर्ष यूरोप में हिटलर की और दक्षिण पूर्व एशिया में जापान की चमत्कारी सफलता का वर्ष था
युद्ध का खतरा भारत के दरवाजे पर आ गया था युद्ध प्रयासों में भारतीयों का शत-प्रतिशत सहयोग प्राप्त करना मित्र राष्ट्र की जरूरत बन गया था
इस कारण रूजवेल्ट, च्यांग काई शेक और लेबर पार्टी का नेतृत्व चर्चिल पर दबाव डालने लगा कि इस समर्थन को प्राप्त करने के लिए भारतीय समस्या का समाधान किया जाए
इसके फलस्वरुप मार्च 1942 को क्रिप्स सम्मेलन भारत भेजा गया क्रिप्स सम्मेलन को भारत भेजने की ब्रिटिश सरकार की मजबूरी थी
ब्रिटिश सरकार भी नहीं चाहती थी कि यह मिशन सफल हो बस वह तो अपने मित्र राष्ट्रों को संतुष्ट करना चाहती थी इसीलिए ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन में ऐसे प्रस्ताव रखे कि उन्हें भारतीय नेता स्वीकार नहीं करें
क्रिप्स मिशन का प्रभाव ब्रिटिश सरकार के लिए भले ही लाभकारी रहा हो लेकिन भारत में इस मिशन की असफलता ने अगस्त क्रांति का तात्कालिक कारण तैयार कर दिया
क्रिप्स प्रस्ताव की असफलताओं ने गांधीजी के विचारों में बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया
जनता को अधिक उग्र विचारधारा से जुड़ने से रोकने के लिए और जापान समर्थक रुख अपनाने से विमुख करने के लिए जरुरी हो गया कि कांग्रेस स्वयं उग्र तेवर अपनाए
16 मई को एक प्रेस साक्षात्कार में अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए गांधीजी ने कहा यह सुव्यवस्थित अनुशासन पूर्ण अराजकता को जाना ही होगा और यदि इसके परिणाम स्वरुप पूर्ण अवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है तो मैं यह खतरा उठाने को तैयार हूं
इस सोच का ही परिणाम था की पॉच जुलाई की कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में गांधी ने जोर दिया कि वह समय आ गया है जब कांग्रेस को मांग बुलंद करनी चाहिए
अंग्रेजों भारत छोड़ो गांधीजी के इस नये रास्ते का समर्थन आजाद और नेहरू नहीं कर रहे थे
अत:एक पत्र के द्वारा गांधी ने उन दोनों से कहा कि वह अपने पद से त्यागपत्र दे दे
14 जुलाई को वर्किंग कमेटी ने नये आंदोलन के संबंध में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया इसी के आधार पर कांग्रेस कमेटी के बंबई अधिवेशन में भारत छोड़ो संबंधित अगस्त प्रस्ताव पारित किया गया


भारत छोड़ो आंदोलन का इतिहास

8 अगस्त 1942 को पारित किए गए प्रस्ताव के प्रथम भाग में एक और तो इसके लिए चिंता व्यक्त की गई थी कि चीनी या रूस की रक्षा व्यवस्था को किसी भी तरह उलझन में ही नहीं डाला जाए दूसरी और इस पर जोर दिया गया कि भारत की भलाई और संयुक्त राष्ट्र के पक्ष की सफलता दोनों के लिए भारत में ब्रिटिश हुकूमत को फौरन समाप्त करना निहायत जरूरी है
यह विश्वास दिलाया गया की स्वतंत्रता की घोषणा के उपरांत भारत में एक अस्थायी सरकार का गठन होगा और स्वतंत्र भारत संयुक्त राष्ट्र का मित्र बन जाएगा और स्वतंत्रता के लिए चलने वाले प्रयास की परीक्षा और कठिनाइयों में उनका साझेदार बनेगा
प्रस्ताव के दूसरे भाग में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए बड़े पैमाने पर अहिंसक जन संघर्ष आरंभ करने और इस संघर्ष का नेतृत्व गांधी को सौपने का निर्णय लिया गया
इस प्रस्ताव से पहले ही गुप्त कार्य योजना प्रसारित की गई इसमें कांग्रेसियों को निर्देश दिया गया कि जब तक का नेताओं को कैद नहीं किया जाता आंदोलन अहिंसक ढंग से चलाया जाए
लेकिन अगर सरकार गांधी जी और दूसरे कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लेती है तो सरकार की हिंसा का हर संभव उपाय से मुकाबला करने के लिए लोगों को हिंसक-अहिंसक कोई भी तरीका अपनाने की आजादी है
लेकिन इसके साथ-साथ कांग्रेस कमेटी को का यह सख्त निर्देश था कि जब तक महात्मा जीे तय नहीं कर लेते हैं कोई आंदोलनात्मक कदम ना उठाया जाए
8 अगस्त को प्रस्ताव पारित हुआ 9 अगस्त को सरकार ने तुरंत जवाबी हमले में गांधी जी सहित प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार किया
इसके बाद देश में व्यापक स्वत:स्फूर्त जन आंदोलन आरंभ हो गया आंदोलन इतना तीव्र था की लिनलिथगो ने उसे 18 57 के बाद का सबसे गंभीर विद्रोह बताया
Andolan पूर्वी और पश्चिमी प्रांत और उत्तरी बिहार में चरम सीमा पर रहा इसके लिए मुख्य रूप से जनता के बढ़ते हुए आर्थिक कष्ट तथा नस्लवाद के खिलाफ उत्पन्न आक्रोश और दक्षिण पूर्व एशिया में अंग्रेजो के पराजय व भारतीयो के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार का उल्लेख किया जा सकता है
भारत छोड़ो आंदोलन की विशेषता यह भी है कि इस संपूर्ण दौर में आंदोलन का नेतृत्व नये युवा लोगों के हाथों में था
भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव/वर्धा प्रस्ताव (14 जुलाई 1942) 
द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ होने के बाद कांग्रेस और सरकार में कोई समझोता नहीं हो पाने के कारण अंत में कांग्रेस ने एक ठोस और प्रभावी आंदोलन करने का निर्णय लिया गांधीजी ने कांग्रेस को अपने प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किए जाने की स्थिति में चुनौती देते हुए कहा मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा में अपनी बैठक में आंदोलन प्रारंभ करने हेतु गांधी जी को अधिकृत कर दिया वर्धा बैठक में गांधी जी ने कहा कि भारतीय समस्या का समाधान अंग्रेजो द्वारा भारत छोड़ देने में ही है इस वर्धा बैठक में गांधी जी के विचार को पूर्ण समर्थन मिला कि भारत में संवैधानिक गतिरोध तभी दूर हो सकता है जब अंग्रेज भारत से चले जाएंगे वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति ने अंग्रेजो भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गांधीजी के इस प्रस्ताव को वर्धा प्रस्ताव करते हैं

मुंबई अधिवेशन अगस्त 1942

भारत छोड़ो आंदोलन की सार्वजनिक घोषणा के पूर्व 1 अगस्त 1942 को इलाहबाद में तिलक दिवस मनाया गया
इस समय जवाहरलाल नेहरू ने कहा हम आग से खेलने जा रहे हैं और ऐसी दुधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं जिसकी चोट उल्टी हमारे ऊपर भी पड़ सकती है
7 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया(अब अगस्त क्रांति मैदान) टैंक में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ
इस अधिवेशन की अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की थी
इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने भारत छोड़ो प्रस्ताव पेश किया जिसको थोड़े बहुत संशोधन के बाद 8 अगस्त 1942 को स्वीकार कर लिया गया
महात्मा गांधी जी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन को प्रारंभ करने से पूर्व 8 अगस्त 1942 को ही मुंबई अधिवेशन में करो या मरो का नारा दिया गया जो काफी प्रसिद्ध हुआ
साथ ही गांधीजी ने कहा कि अब कांग्रेस पूर्ण स्वराज्य से कम के किसी भी सरकारी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी
इस प्रस्ताव में कहा गया कि भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत, भारत के लिए और मित्र राष्ट्रों के आदर्श के लिए अत्यंत आवश्यक है
इस पर ही युद्ध का भविष्य और स्वतंत्रता और प्रजातंत्र की सफलता निर्भर है
कांग्रेस के ऐतिहासिक सम्मेलन में गांधी जी ने लगभग 70 मिनट तक भाषण दिया था उन्होंने कहा था कि मैं आपको एक मंत्र देता हूं करो या मरो जिसका अर्थ था भारत की जनता देश की आजादी के लिए हर ढंग का प्रयत्न करें
बस इस बात का ध्यान रखेगी आंदोलन गुप्त या हिंसात्मक ना हो उन्होंने कहा आप लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति को अब से स्वतंत्र व्यक्ति समझना चाहिए और इस प्रकार कार्य करना कि मानो आप स्वतंत्र हो
मैं स्वतंत्रता से कम किसी भी वस्तु से संतुष्ट नहीं होऊंगा
गांधी जी के भाषण के बारे में डॉक्टर पट्टाभि सीतारमैया ने लिखा है कि वास्तव में गांधीजी उस दिन अवतार और पैगंबर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे
इसी भाषण के दौरान ही गांधी जी ने कहा था कि हम अपने गुलामी स्थाई बनाए बनाया जाना नहीं देख सकते
गांधी जी ने अपने भाषण में लोगों को जो निर्देष दिए थे उसके विभिन्न निम्नवत हैं
सरकारी कर्मचारी नौकरी नहीं छोड़े लेकिन कांग्रेस के प्रति निष्ठा की घोषणा कर दें
राजा महाराजे भारतीय जनता की प्रभु सत्ता स्वीकार कर ले और रियासतों में रहने वाली जनता अपने को भारतीय राज्य का अंग घोषित करें
छात्रों से कहा गया कि वह पढ़ाई तभी छोड़े जब आजादी प्राप्त होने तक इस पर अडिग रह सके
काश्तकारों के लिए निर्देश दिया था कि यदि जमीदार उसका साथ ना दे तो वह कर ना चुकता करें

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ 1934 के बाद का घटनाक्रम से ही शुरू हो गया था
लेकिन सार्वजनिक रूप से इसे 9 अगस्त 1942 को शुरू किया गया
वर्धा अधिवेशन में भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव को पारित किया गया
इसके पश्चात 8 अगस्त 1942 को इस प्रस्ताव में संशोधन करके इसे स्वीकार कर लिया
भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ करने से पहले हैं 8 अगस्त की मध्यरात्रि के बाद ही सरकार ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार करने की योजना बनाई
ब्रिटिश सरकार 9 अगस्त 1942 की सुबह ऑपरेशन जीरो आँवर के तहत कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया
महात्मा गांधी और कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में जनता द्वारा जो आंदोलन चलाया गया वही भारत छोड़ो आंदोलन था
भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त 1942 को आरंभ हुआ और लगभग 2 महीने तक चला
भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व अरुणा आसफ अली, जयप्रकाश नारायण ,डॉक्टर राम मनोहर लोहिया, समाजवादी नेताओं द्वारा किया गया
ब्रिटिश सरकार द्वारा गांधी जी को गिरफ्तार करके पुणे के आगा खाँ पैलेस में और कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया
सरोजिनी नायडू और कस्तूरबा गांधी को भी आगा खाँ पैलेस में रखा गया
जवाहरलाल नेहरू का अल्मोड़ा जेल में,डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को बांकीपुर जेल (पटना) और मौलाना अबुल कलाम आजाद को बाकुड़ा जेल में रखा गया
कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर सरकार ने इस संस्था की संपत्ति जप्त कर लिया और जुलूसों पर प्रतिबंधित कर दिया
सरकार के इन कृत्यो इसे जनता भड़क उठी और नेतृत्व विहीन होकर तोड़फोड़ में जुट गई
परिणाम स्वरुप इस आंदोलन में एक भूमिगत संगठनात्मक ढांचा भी तैयार हो गया था
हजारीबाग के सेंट्रल जेल से भागने के बाद जयप्रकाश नारायण में भूमिगत होकर इस आंदोलन की बागडोर संभाली और आजाद दस्ता का गठन किया
भारत छोड़ो आंदोलन राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष का प्रथम आंदोलन था जो नेतृत्वहीन की स्थिति में भी अपने उद्देश्यों को पूरा कर सका इस
आंदोलन के दौरान जनता द्वारा बड़े पैमाने पर हिंसा का प्रयोग किया गया
जबकि जगह-जगह रेलवे पटरियों को उखाड़ आ गया और बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया
इस आंदोलन के दौरान कितनी ही जगह आंदोलनकारियों द्वारा समानांतर सरकार की स्थापना की गई जैसे मिदनापुर (बंगाल) बलिया (उत्तर प्रदेश) बस्ती( बिहार) सतारा (महाराष्ट्र( में समानांतर सरकार बनाई गई है
भारत छोड़ो आंदोलन का देशभर में प्रसारण

इनदिनों आंदोलन का समाचार पहुंचाना भी एक महत्वपूर्ण कार्य था
इससे सबसे रोमांचकारी कार्य मुंबई शहर के विभिन्न केंद्रों से कांग्रेस रेडियो पर संचालन था इसके प्रसारण को मद्रास तक सुना जा सकता था
रेडियो प्रसारण का कार्य 14 अगस्त से सर्वप्रथम ऊषा मेहता ने प्रारंभ किया था ,एक अन्य केंद्र पर बाबूभाई चला रहे थे
जबकि राम मनोहर लोहिया नियमित रूप से कांग्रेस रेडियो में बोलते थे
नवंबर 1942 में पुलिस ने खोज निकाला और बाबू भाई को 4 वर्ष की सजा हुई
भारत छोड़ो आंदोलन का परिणाम

भारत की अंग्रेजी सरकार ने 13 फरवरी 1943 को भारत छोड़ो आंदोलन के समय हुए विद्रोह का पूरा दोष गांधीजी और कांग्रेस पर डाल दिया
गांधीजी ने इन बेबुनियाद दोषों को अस्वीकार करते हुए कहा कि मेरा वक्तव्य अहिंसा की सीमा में था
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के प्रत्येक अहिंसक सिपाही को कागज या कपड़े के टुकड़ों पर करो या मरो का नारा लिख कर चिपका लेना चाहिए
जिससे यदि सत्याग्रह करते समय उसकी मृत्यु हो जाए तो उसे इस चिह्न के आधार पर दूसरे लोगों से अलग किया जा सके जिनका अहिंसा में विश्वास नहीं है
गांधी जी ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिद्ध करने के लिए सरकार से निष्पक्ष जांच करने की मांग की
सरकार के इस ओर ध्यान न देने पर 10 फरवरी 1946 को गांधीजी ने 21 दिन का उपवास शुरू कर दिया
इस उपवास का देश पर व्यापक प्रभाव पड़ा जनता ने सरकार पर गांधी जी को रिहा करने के लिए दबाव डाला
विदेशी समाचार पत्रों और संस्थाओं ने भी गांधीजी को रिहा करने का सुझाव दिया
7 मार्च 1946 को ब्रिटिश सरकार को चकमा देते हुए महात्मा गांधी जी ने भूख हड़ताल समाप्त कर दी तब तक महात्मा गांधी जी की तबीयत खराब होने लगी थी
लेकिन चर्चील ने कहा कि हम दुनिया में हर जगह जीत रहे हैं तब ऐसे समय एक कमबख्त बुड्ढे के समक्ष कैसे झुक सकते हैं जो सदियों से हमारा दुश्मन रहा है
सरकार की इस बर्बर नीति के विरोध में वॉयसराय के काउंसिल के सदस्य सर मोदी ,सर एन.एन. सरकार और अणे ने इस्तीफा दे दिया
गांधी जी को बाद में बीमारी के आधार पर 6 मई 1944 को रिहा किया गया
जिस समय गांधीजी रिहा हुए उससे पूर्व उनकी पत्नी कस्तूरबा देवी और उनके निजी सचिव महादेव देसाई की मृत्यु हो चुकी थी
18-57 के विद्रोह के बाद में पहला अवसर था जब जनता द्वारा सरकार के खिलाफ जमकर संघर्ष किया गया था
लेकिन अंत में यह आंदोलन असफल रहा और ब्रिटिश सरकार द्वारा इस आंदोलन को शक्ति पूर्वक कुचल दिया गया
लिनलिथगो ने इस आंदोलन को 1857 की क्रांति के बराबर माना
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता के लिए किया गया सबसे महान प्रयास था
भारत छोड़ो आंदोलन के बाद इस तरह का कोई भी वृहद स्तर पर जनांदोलन नहीं छेड़ा गया
भारत छोड़ो आंदोलन के महत्व

भारत छोड़ो आंदोलन तात्कालिक रुप से असफल अवश्य रहा क्योंकि इस Andolan से भारत को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकी
लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता के लिए किया गया सबसे महान प्रयास था इस आंदोलन के बाद भारत में आजादी के लिए बड़े पैमाने पर कोई आंदोलन नहीं किया गया था 
भारत छोड़ो आंदोलन का जन चेतना जगाने में महत्वपूर्ण योगदान था
इस आंदोलन ने विश्व के कई देशों को भारतीय जनमानस के साथ खड़ा कर दिया
आंदोलन के फलस्वरुप विदेशों में भारत के पक्ष में जनमत का निर्माण हुआ 
विशेषकर इस आंदोलन के दौरान चीन के राष्ट्रपति च्यांग काई शेक ने 25 जुलाई 1942 को अमरीकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट को लिखा था कि अब समय आ गया है कि ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता प्रदान कर देनी चाहिए यही ब्रिटिश सरकार अथवा अंग्रेजो के लिए श्रेष्ठ नीति रहेगी रूजवेल्ट ने भी इसका समर्थन किया था
सरदार वल्लभभाई पटेल ने आंदोलन के बारे में लिखा भारत में ब्रिटिश राज्य के इतिहास में ऐसा विप्लव कभी नहीं हुआ जैसा कि पिछले 3 वर्षों में हुआ लोगों की प्रतिक्रिया पर हमें गर्व है
इस आंदोलन के दौरान जनता द्वारा सरकार के विरुद्ध महीनो तक जो जमकर संघर्ष किया गया उसके फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार को यह एहसास हो गया कि भारतीय जनता में इस हद तक राजनीतिक जागृति आ गई की अब लंबे समय तक भारत पर शासन करना अंग्रेजों के लिए संभव नहीं होगा

डॉक्टर ईश्वरी प्रसाद ने इस आंदोलन के महत्व की विवेचना करते हुए लिखा है कि अगस्त क्रांति अत्याचार और दमन के विरुद्ध भारतीय जनता का विद्रोह था
इसकी तुलना फ्रांस के इतिहास में वेस्टीलों के पतन और सोवियत रूस के इतिहास में अक्टूबर की क्रांति से की जाती है यह क्रांति जनता में उत्पन्न नवीन गरिमा और उत्साह की सूचक है इस आंदोलन से अमेरिका और इंग्लैंड में भारत के पक्ष में सुदृढ़ जनमत का निर्माण हुआ

भारत छोड़ो आंदोलन की मुख्य विशेषता विशेषता
(Main Feature Attribute of Quit India Movement)
भारत छोड़ो आंदोलन की एक मुख्य विशेषता यह थी कि इस दौरान देश के कई भागों में समानांतर सरकार की स्थापना हुई
1. बलिया- प्रथम समानांतर राष्ट्रीय सरकार चितु पांडे के नेतृत्व में बलिया और पड़ोसी गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)दोनों ही स्थानों पर थोड़े समय के लिए स्थापित की गई बलिया में 10 पुलिस थानों पर कब्जा कर लिया गया
2. तामलुक- बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलुक नामक स्थान पर 17 दिसंबर 1942 को तामलुक जातीय सरकार की स्थापना की गई तामलुक में गठित राष्ट्रीय सरकार 1 सितंबर 1944 तक चलती रही इस सरकार को जातीय सरकार के नाम से जाना जाता है यहां की सरकार ने एक सशस्त्र विद्युत वाहिनी का गठन किया
तामलुक की 73 वर्षीय किसान विधवा मातंगिनी हज़ारा ने गोली लग जाने के बाद भी राष्ट्रीय झंडे को ऊंचा रखा था
3. सतारा-सतारा (महाराष्ट्र)मे इस समय की सर्वाधिक दीर्घजीवी समानांतर सरकार की स्थापना हुई थी
यह सरकार 1945 तक कार्यरत रही इस सरकार के नेता वाई.बी.चाह्वाण, नाना पाटिल प्रमुख नेता थे

विभिन्न दलों की प्रतिक्रिया(भारत छोड़ो आंदोलन की आलोचना)
भारत छोड़ो आंदोलन की कई दलों और लोगों ने आलोचना की थी तात्कालीन भारतीय राजनीतिक दलों में साम्यवादी दल ने इसकी आलोचना की

मुस्लिम लीग ने भी भारत छोड़ो आंदोलन की आलोचना करते हुए कहा कि आंदोलन का लक्ष्य भारतीय स्वतंत्रता नहीं बल्कि भारत में हिंदू साम्राज्य की स्थापना करना था
मुस्लिम लीग के नेताओं ने ऐसे में ब्रिटिश सरकार की सहायता की
इसके परिणाम स्वरुप 23 मार्च 1943 को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान दिवस मनाने का आह्वान किया
मुस्लिम लीग ने दिसंबर 1943 में कराची में हुए अधिवेशन में विभाजन करो और छोड़ो का नारा दिया
कांग्रेस के उदारवादियों को भी यह आंदोलन नहीं भाया ,सर तेज बहादुर सप्रू ने इस प्रस्ताव को अविचारित और असामयिक बताया
राजगोपालाचारी ने भी इसकी आलोचना की
भीमराव अंबेडकर ने इसे अनुत्तरदायित्वपूर्ण और पागलपन भरा कार्य बताया
हिंदू महासभा और अकाली दल ने भी इस आंदोलन की आलोचना की थी


भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ करने के कारण
भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी जी का तीसरा मुख्य आंदोलन था इस आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है इस आंदोलन को प्रारंभ करने के पीछे निम्न मुख्य कारण उत्तरदायी थे
1. महात्मा गांधी ने क्रिप्स मिशन की असफल और भारत पर जापानी आक्रमण की संभावना पैदा होने पर भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ किया
2. ब्रिटिश सरकार द्वारा बर्मा में भारतीय शरणार्थियों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार करना
3. द्वितीय महायुद्ध के दौरान भारत के विभिन्न भागों में आवश्यक वस्तुओं में कमी हो जाना जिससे जनता को काफ़ी कठिनाइयों का सामना सामना करना पड़ा

सुमित सरकार के अनुसार भारत छोड़ो आंदोलन के इतिहास के चरण
सुमित सरकार भारत छोड़ो आंदोलन के इतिहास को मोटे तौर पर तीन चरणों में विभक्त करते हैं

प्रथम चरण में आंदोलन अल्पकालिक किंतु सर्वाधिक हिंसक था मूलत:शहरी आंदोलन था इसका प्रभाव मुंबई ,दिल्ली, कोलकाता के साथ-साथ लखनऊ, कानपुर ,नागपुर ,अहमदाबाद पर अधिक पड़ा आंदोलन को विद्यार्थियों ने आरंभ किया और मध्यम वर्ग ने उसमे बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया

दूसरे चरण में आंदोलन ग्रामीण आंदोलन में बदल गया संचार साधन नष्ट करना और विदेशी सत्ता के विरुद्ध किसान संघर्ष का नेतृत्व करना आंदोलन की विशेषता रही इस दौर में आंदोलन के मुख्य केंद्र बिहार ,पूर्वी संयुक्त प्रांत, मीदनापुर (बंगाल) और महाराष्ट्र कर्नाटक उड़ीसा के कुछ क्षेत्र रहे अनेक स्थानों पर अल्पकालिक राष्ट्रीय सरकारे स्थापित की गई

आंदोलन का तीसरा चरण सितंबर 1942 के मध्य से आरंभ हुआ था यह सबसे लंबा किंतु सबसे कम उग्र चरण था और इस चरण की मुख्य विशेषता यह रही कि शिक्षित के मध्यम वर्गीय नव युवकों ने आतंकवादी गतिविधियों और छापामार संघर्षों को चलाया चरण में भी कुछ क्षेत्रों में समानांतर राष्ट्रीय सरकारी गठित की गई की तमलुक की सरकार को सितंबर 1944 तक काम करती रही

1942 के आंदोलन का दमन करने में ब्रिटिश सरकार ने क्रूरता व जंगली पन सभी सीमाओं को तोड़ दिया 1946 तक लगभग 92000 लोग कैद किये गये कम से कम 1000 लोग पुलिस के हाथों मारे गए बलात्कार ,अमानुषिक उत्पीड़न ,व गॉवो को आगलगाऊ पुलिस द्वारा जलाकर राख करने की घटनाएं सामान्य हो गई


सुमित सरकार के शब्दों में इस दमन की तुलना केवल 1857 से की जा सकती थी अंतर यह था कि अब अंग्रेजो के हाथ में आधुनिक सैन्य विज्ञान के सभी साधन थे जबकि जनता लगभग पूर्ण रुप से निहत्थी थी इस निर्मम दमन के बावजूद आंदोलन कितना उग्र रहा था इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है 1943 के अंत तक 208 पुलिस चौकिया,332 रेलवे स्टेशन और 945 डाकघर या तो नष्ट या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिए गए थे और 644 बम विस्पोट हुए थे

1942 का आंदोलन अविस्मरणीय घटनाएँ और व्यक्तित्व

8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव कांग्रेस कमेटी के बंबई अधिवेशन में पारित हुआ
9 अगस्त को पूरी वर्किंग कमेटी व कई अन्य नेता गिरफ्तार और कांग्रेस गैरकानूनी संगठन घोषित किया
2 सप्ताह तक मुंगेर का संपर्क बाहरी दुनिया से कटा रहा
भारत आंदोलन के आरंभ से ही हिंदू यूनिवर्सिटी पर सेना ने अधिकार कर लिया
अहमदाबाद की कपड़ा मिलें तीन माह तक बंद रही
9 नवंबर 1942 को हजारीबाग जेल से भागकर जयप्रकाश नारायण ने केंद्रीय एक्शन कमेटी का गठन कर नेपाल को अपना अड्डा बनाया और आजाद दस्ता का गठन किया
11 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय के सामने क्रांतिकारियों और सरकार के सशस्त्र बलों में संघर्ष में अनेक शहीद हुए
तमलुक (मिदनापुर) तलचर (उड़ीसा) सातारा( महाराष्ट्र)और बलिया (पूर्वी सयुक्त प्रांत) में राष्ट्रीय सरकारों की स्थापना की इनके तमलुक सरकार सबसे अधिक समय तक लगभग 1944 तक काम करती रही
किसान संघर्ष के चलते बिहार के सारन जिला को कुख्यात अपराधी जिला घोषित कर दिया गया
आंदोलन से सबसे ज्यादा प्रभावित देशी राज्य था-मैसूर
बलिया गाजीपुर की राष्ट्रीय सरकार का नेतृत्व चित्तू पाण्डे द्वारा किया गया था तथा तमलुक सरकार के पहले सर्वाधिनायक सतीश सामंत थे
तमलुक में संघर्ष में शहीद होने वालों में 73 वर्षीय मातंगिनी हज़ारा थी जिन्होंने गोली लगने पर भी राष्ट्रीय ध्वज को ऊचा रखा था
ओडिशा के कोरापुट में संघर्ष का नेतृत्व लक्ष्मण नायक द्वारा कटक में रक्त वाहिनी संगठन द्वारा आतंकवादी कार्यवाहियां
सतारा में नाना पाटील द्वारा आरंभ किया गया संघर्ष को डाक मेग्जी के द्वारा पूर्ण सहायता दी गई
1942 के आंदोलन के चर्चित नेता जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया ,अरुणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन ,आचार्य नरेंद्रदेव थे

Saturday, 31 August 2019

विलोम शब्द

विलोम शब्द

अमृत- विष
अथ- इति
अन्धकार- प्रकाश
अल्पायु- दीर्घायु
अनुराग- विराग
अनुज- अग्रज
अधिक- न्यून
अर्थ- अनर्थ
अतिवृष्टि- अनावृष्टि
अनुपस्थिति- उपस्थिति
अज्ञान- ज्ञान
अनुकूल- प्रतिकूल
अभिज्ञ- अनभिज्ञ
अल्प- अधिक
अनिवार्य- वैकल्पिक
अगम- सुगम
अभिमान- नम्रता
अनुग्रह- विग्रह
अपमान- सम्मान
अरुचि- रुचि
अर्वाचीन- प्राचीन
अवनति- उन्नति
अवनी- अंबर
अच्छा- बुरा
अच्छाई- बुराई
अमीर- ग़रीब
अंधेरा- उजाला
अर्जित- अनर्जित
अंत- प्रारंभ
अंतिम- प्रारंभिक
अनजान- जाना-पहचाना
आदि- अंत
आगामी- गत
आग्रह- दुराग्रह
आकर्षण- विकर्षण
आदान- प्रदान
आलस्य- स्फूर्ति
आदर्श- यथार्थ
आय- व्यय
आहार- निराहार
आविर्भाव- तिरोभाव
आमिष- निरामिष
आर्द्र- शुष्क
आज़ादी- ग़ुलामी
आकाश- पाताल
आशा- निराशा
आश्रित- निराश्रित
आरंभ- अंत
आदर- अनादर
आयात- निर्यात
आर्य- अनार्य
आदि- अनादि
आस्तिक- नास्तिक
आवश्यक- अनावश्यक
आनंद- शोक
आधुनिक- प्राचीन
आना- जाना
आलस्य- फुर्ती
आध्यात्मिक- भौतिक
इच्छा- अनिच्छा
इष्ट- अनिष्ट
इच्छित- अनिच्छित
इहलोक- परलोक
उत्कर्ष- अपकर्ष
उत्थान- पतन
उद्यमी- आलसी
उर्वर- ऊसर
उधार- नक़द
उपस्थित- अनुपस्थित
उत्कृष्ट- निकृष्ट
उपजाऊ- बंजर
उदय- अस्त
उपकार- अपकार
उदार- अनुदार
उत्तीर्ण- अनुत्तीर्ण
उत्तर- दक्षिण
ऊंचा- नीचा
उन्नति- अवनति
उचित- अनुचित
उत्तरार्द्ध- पूर्वार्द्ध
एकता- अनेकता
एक- अनेक
ऐसा- वैसा
औपचारिक- अनौपचारिक
कृतज्ञ- कृतघ्न
क्रय- विक्रय
कमाना- खर्च करना
क्रूर- दयालु
कच्चा- पक्का
कटु- मधुर
क्रिया- प्रतिक्रिया
कड़वा- मीठा
क्रुद्ध- शान्त
कर्म- निष्कर्म
कठिनाई- सरलता
कभी-कभी- अक्सर
कठिन- सरल
केंद्रित- विकेंद्रित
क़रीबी- दूर के
कम- अधिक
खेद- प्रसन्नता
खिलना- मुरझाना
खुशी- दु:ख
ख़रीददार- विक्रेता
ख़रीद- बिक्री
ख़रीदना- बेचना
गर्म- ठंडा
गन्दा- साफ़
गहरा- उथला
ग़रीब- अमीर
गुण- दोष, अवगुण
ग़लत- सही

घृणा- प्रेम
घात- प्रतिघात
घर- बाहर
घाटा- फ़ायदा
चर- अचर
चौड़ी- संकरी, तंग
छोटा- बड़ा
छूत- अछूत
जन्म- मृत्यु
जल्दी- देरी
जीवन- मरण
जल- थल
जड़- चेतन
जटिल- सरस
झूठ- सच
ठोस- तरल
डरपोक- निड़र
तुच्छ- महान
तकलीफ़- आराम
तपन- ठंडक
दुर्लभ- सुलभ
दाता- याचक
दिन- रात
देव- दानव
दुराचारी- सदाचारी
दयालु- निर्दयी
देशी- परदेशी
धीरे- तेज़
धनी- ग़रीब, निर्धन
धर्म- अधर्म
धूप- छाँव
धीर- अधीर
न्याय- अन्याय
निजी- सार्वजनिक
नक़द- उधार
नियमित- अनियमित
निश्चित- अनिश्चित
निरक्षर- साक्षर
नूतन- पुरातन
निंदा- स्तुति
निर्दोष- र्दोष
नीचा- ऊंचा
नकली- असली
निर्माण- विनाश
निकट- दूर
प्यार- घृणा
प्रत्यक्ष- परोक्ष
पतला- मोटा
पाप- पुण्य
पतिव्रता- कुलटा
प्रलय- सृष्टि
पवित्र- अपवित्र
प्रश्न- उत्तर
पूर्ण- अपूर्ण
प्रेम- घृणा
परतंत्र- स्वतंत्र
प्राचीन- नवीन / नया
पक्ष- निष्पक्ष
प्राकृतिक- अप्राकृतिक
प्रसन्न- अप्रसन्न
प्रभावित- अप्रभावित
पोषण- कुपोषण
परिचित- अपरिचित
प्रवेश- निकास
पदोन्नति- पदावनति
प्रतिकूल- अनुकूल
प्रारंभ- अंत
पसंद- नापसंद
बंधन- मुक्ति
बुद्धिमता- मूर्खता
बासी- ताजा
बाढ़- सूखा
बुराई- भलाई
भूलना- याद रना
भाव- अभाव
मूक- वाचाल
मितव्यय- अपव्यय
मोक्ष- बंधन
मौखिक- लिखित
मानवता- दानवता
महात्मा- दुरात्मा
मान- अपमान
मधुर- कटु
मित्र- शत्रु
मिथ्या- सत्य
मंगल- अमंगल
महंगा- सस्ता
मेहनती- आलसी / कामचोर
मृत्यु- जन्म
मंजूर- नामंजूर
मुमकिन- नामुमकिन
अनुग्रह- विग्रह, कोप
सन्धि विग्रह, विच्छेद
विग्रह -समास
समास -व्यास
आकाश - पाताल
अवनि -अम्बर
गगन -धरती
अंधेरा -उजाला
तिमिर -आलोक, प्रकाश
आलोक- अंधकार
अंधकार -प्रकाश
ज्योति -तम
अज्ञ -विज्ञ, प्रज्ञ
अभिज्ञ- अनभिज्ञ
अल्पज्ञ -सर्वज्ञ, बहुज्ञ
विज्ञ -अज्ञ
न्यून -अधिक
अति -अल्प
अल्प -बहु
लघु -दीर्घ
दीर्घ -ह्रस्व
ह्रस्व -दीर्घ
विकास- ह्रास
ह्रास -वृद्धि
वृद्धि -संक्षेपण
पल्लवन- संक्षेपण
सूक्ष्म -स्थूल
गुरु -लघु
अधम- उत्तम
महान -तुच्छ
क्षुद्र -विराट
विराट- लघु
लघु -दीर्घ
दीर्घ -ह्रस्व
क्षीण -पुष्ट
अल्पायु- दीर्घायु
स्वल्पायु -चिरायु
चिरंतन -नश्वर
नश्वर -शाश्वत
शास्वत- क्षणिक
कुटिल -सहज, सरल
सरल -जटिल, कुटिल, वक्र
जटिल -सरल
उग्र -सौम्य
भीषण- सौम्य
सरस -नीरस
रसिक -नीरस
मसृण -रुक्ष
रुक्ष -मृदु, मसृण
मृदुल -कठोर
कठोर -कोमल
कर्कश -मधुर
मधुर -कटु
सौम्य -उग्र
कड़वा -मीठा
खट्टा -मीठा
कडा -मुलायम
उद्धत -विनीत
विनीत -दुर्विनीत, उद्दंड, उद्धत
धृष्ट -विनम्र
मौन -मुखर
मूक -वाचाल
आकुंचन -प्रसारण
प्रसारण -संकुचन
विस्तार -संक्षेप
विस्तृत -संक्षिप्त
संकीर्ण -विस्तीर्ण
एकत्र -सर्वत्र
आकीर्ण- विकीर्ण
संयुक्त -वियुक्त
फैलना -सिकुड़ना
आयोजन- वियोजन
वियोजन -संयोजन
वियोग -संयोग
अगाध -छिछला
गहरा -उथला
राग -विराग
विराग- अनुराग
अनुराग- विराग
अनुरक्त -विरक्त
अनुरक्ति -विरक्ति
विरक्त -अनुरक्त, आसक्त
आसक्त -उदासीन, अनासक्त
रत -विरत
विरत- निरत
शेष -अशेष
अवशेष -निःशेष
उन्मूलन -रोपण
उन्मीलन -निमीलन
अनिवार्य -ऐच्छिक
ऐच्छिक -अनैच्छिक
अगम -सुगम
दुर्गम -सुगम
उत्पत्ति -विनाश
उत्थान -पतन
उत्कर्ष -अपकर्ष
वैभव -पराभव
विभव -पराभव
उद्भव -पराभव, अवसान
आविर्भाव -तिरोभाव
ऊर्ध्व -अधः
उपरि -अधः
वेदना -आनंद
आंनद -शोक
शोक -हर्ष
हर्ष -विषाद
खेद -प्रसन्नता
सुख -दुःख
खीजना -रीझना
मग्न -दुखी
उल्लास -अवसाद
उपमान -उपमेय
उपमा -व्यतिरेक
आदर -निरादर
अपमान- सम्मान
आदरणीय -अनादरणीय
विदाई -स्वागत
स्वागत -तिरस्कार
सत्कार- तिरस्कार
पुरस्कार -तिरस्कार
परितोष -दंड
दंड -पुरस्कार
पुरस्कार -तिरस्कार
आचार -अनाचार
कदाचार- सदाचार
सदाचार -दुराचार
गत -आगत
आगत -अनागत
गमन -आगमन
निर्गमन- आगमन
आगमन -प्रस्थान

लोकोक्तियां

हिन्दी लोकोक्तियाँ

जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे : जिसकी जो काम होता है वही उसे कर सकता है। प्रयोग -वो कंप्यूटर साइंस का इंजीनयर है उसे खेत में फावड़ा चलाने के लिए भेज दिया गया तभी एकगांव के आदमी ने उसकी बेरुखी कार्य प्रणाली को देख के कहा की जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे ..
जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे : जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।
जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा : जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते.
जिसके राम धनी, उसे कौन कमी : जो भगवान के भरोसे रहता है,उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.
जिसके हाथ डोई (करछी) उसका सब कोई : सब लोग धनवान का साथ देते हैं और उसकी खुशामद करते हैं.
जिसे पिया चाहे वही सुहागिन : जिस पर मालिक की कृपा होती हैउसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है।
जी कहो जी कहलाओ : यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग तुम्हारा भी आदर करेंगे.
जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है : कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया : यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये.
जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध : झूठ मुठ का दिखावा करना प्रयोग-कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं.
जी ही से जहान है : यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए.
जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग : जब कोई कठिन परिश्रम करे और उसका आनंद दूसरा उठावे तब कहते हैं, प्रयोग-गरीब आदमी परिश्रम करते हैं और पूँजीपति उससे लाभ उठाते हैं ये तो वही बात हो गई .-जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग
जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती : साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता. प्रयोग-एक बार फेल हो जाने से पूरा जीवन अंधकार में नही रखा जाता है 
जेठ के भरोसे पेट : जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं.
जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार : संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है।
जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास : जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो जाता है।
जैसा कन भर वैसा मन भर : थोड़ी-सी चीज की जाँच करने से पता चला जाता है कि राशि कैसी है।
जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे : जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए.
जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी : जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा.
जैसा देश वैसा वेश : जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए.
जैसा मुँह वैसा तमाचा : जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश : जैसा समय आ पड़े उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिए.
जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट : समय और परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए.
जैसी तेरी तोमरी वैसे मेरे गीत : जैसी कोई मजदूरी देगा, वैसा ही उसका काम होगा.
जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश : निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है।
जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम,-जैसे को जैसा मिलना प्रयोग- जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है।
दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम -जैसे को जैसा मिलना प्रयोग-जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है।
जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार : जैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं.
जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच,
पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच -जो जैसा होता है उसका मेल वैसों से ही होता है.
जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : जिस व्यक्ति पर जितनी अधिक विपत्ति पड़ी रहती है उतना ही अधिक वह सुख का आनंद पाता है।
जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की : रोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है।
जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन,
बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन :-चाहे गंवार पढ़-लिख ले तिस पर भी उसमें तीन गुणों का अभाव पाया जाता है। बातचीत करना, चाल-ढाल और बैठकबाजी.
जो गुड़ खाय वही कान छिदावे : जो आनंद लेता हो वही परिश्रम भी करे और कष्ट भी उठावे.
जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाए : जो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए.
जो टट्टू जीते संग्राम, तो क्यों खरचैं तुरकी दाम : यदि छोटे आदमियों से काम चल जाता तो बड़े लोगों को कौन पूछता.
जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है : जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है।
जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट : यदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए.
जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवे : जो परिश्रम करता है उसे लाभ होता है, आलसी को केवल हानि ही हानि होती है।
जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए : जो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते.
जो बोले सो कुंडा खोले : यदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपाजाये.
जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में : जो सुखअपने घर में मिलता है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकता.
जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई : जोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं.
जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ : गैरिक वस्त्र पहनने से ही कोई जोगी नहीं हो जाता.
जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान : बड़ों की लड़ाई मेंगरीबों की हानि होती है।
जोरू चिकनी मियाँ मजूर : पति-पत्नी के रूप में विषमता हो, पत्नी तो सुन्दर हो परन्तु पति निर्धन और कुरूप हो.
जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी : स्त्री धन चाहती है औरमाता अपने पुत्र का स्वास्थ्य चाहती है। स्त्री यह देखना चाहती है कि मेरे पति ने कितना रुपया कमाया. माता यह देखती है कि मेरा पुत्र भूखा तो नहीं है।
जोरू न जांता, अल्लाह मियां से नाता : जो संसार में अकेला हो, जिसके कोई न हो.
ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय : जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा.
ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े : ज्यों-ज्यों आमदनी बढ़े, त्यों-त्यों कंजूसी करे.
ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध : जब कोई व्यक्तिकिसी दोषी पुरुष के दोष को बतलाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है।
झगड़े की तीन जड़, जन, जमीन, जर : स्त्री, पृथ्वी और धन इन्हीं तीनों के कारण संसार में लड़ाई-झगड़े हुआ करते हैं.
झट मँगनी पट ब्याह : किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति.
झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी : जल्दी का काम अच्छा नहीं होता.
झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर : छोटी जगह में छोटे आदमी बड़े समझे जाते हैं.
झूठ के पांव नहीं होते : झूठा आदमी बहस में नहीं ठहरता, उसे हार माननी होती है।
झूठ बोलने में सरफ़ा क्या : झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता.
झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए : झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे.
टंटा विष की बेल है : झगड़ा करने से बहुत हानि होती है।
टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायकाः
टका सर्वत्र पूज्यन्ते,बिन टका टकटकायते :
संसार में सभी कर्म धन से होते हैं,बिना धन के कोई काम नहीं होता.
टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में : धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है।
टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा : मूर्ख को दंड देने की आवश्यकता पड़ती है और बुद्धिमानों के लिए इशारा काफी होता है।
टाट का लंगोटा नवाब से यारी : निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास.
टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए : ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो.
टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे : जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है।
ठग मारे अनजान, बनिया मारे जान : ठग अनजान आदमियों को ठगता है, परन्तु बनिया जान-पहचान वालों को ठगता है।
ठुक-ठुक सोनार की, एक चोट लोहार की : जब कोई निर्बल मनुष्य किसी बलवान्‌ व्यक्ति से बार-बार छेड़खानी करता है।
ठुमकी गैया सदा कलोर : नाटी गाय सदा बछिया ही जान पड़ती है। नाटा आदमी सदा लड़का ही जान पड़ता है।
ठेस लगे बुद्धि बढ़े : हानि सहकर मनुष्य बुद्धिमान होता है।
डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ : नाम के विपरीत गुण होने पर.
डायन को भी दामाद प्यारा : दुष्ट स्त्र्िायाँ भी दामाद को प्यार करती हैं.
डूबते को तिनके का सहारा : विपत्त्िा में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।
डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई : थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना.
डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार : जब कोई बिना बुलाए कहीं जाने को तैयार हो.
ढाक के वही तीन पात : सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं.
ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ : जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान्‌ माना जाता है।
ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै : यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी.
अपना रख, पराया चख : अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना
अपनी करनी पार उतरनी : स्वयं का परिश्रम ही काम आता है।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता : अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है।
अधजल गगरी छलकत जाय : ओछा आदमी अधिक इतराता है।
अंधों में काना राजा : मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है।
अंधे के हाथ बटेर लगना : अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोगसे अच्छी वस्तु मिलना।
अंधा पीसे कुत्ता खाय : मूर्खौं की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं। असावधानी से अयोग्य को लाभ।
अब पछताये होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत : अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं।
अन्धे के आगे रोवै अपने नैना खावैं : निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है : अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान बन जाता है।
अन्धेरनगरी चैपट राजा : प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें : बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना।
अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।
अपना हाथ जगन्नाथ : अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है।
अपनी-अपनी डपली सबकाअपना-अपना राग : तालमेल का अभाव/अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव
अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय : स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है।
अंत भला तो सब भला: कार्य का अन्तिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता है।
आ बैल मुझे मार: जानबूझ कर मुसीबत में फंसना
आम के आम गुठली के दाम : हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ
आँख का अंधा नाम नयन सुखः गुणों के विपरीत नाम होना।
आगे कुआँ पीछे खाई : दोनों/सब ओर से विपत्ति में फँसना
आप भला जग भला : अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है।
आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास: उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना।
आधा तीतर आधा बटेर: अनमेल मिश्रण/बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो।
इन तिलोंमें तेल नहीं : किसी लाभ की आशा न होना।
आठ कनौजिए नौ चूल्हे: फूट होना।
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना।
उल्टे बाँस बरेली को : विपरीत कार्य या आचरण करना
ऊधो का न लेना, न माधो का देना : किसी से कोई मतलब न रखना/सबसे अलग।
ऊँची दुकान फीका पकवान : वास्तविकता से अधिक दिखावा। दिखावा ही दिखावा। केवल बाहरी दिखावा।
ऊँट के मुँह में जीरा : आवश्यकता की नगण्य पूर्ति
ऊखली में सिर दिया तो : जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो मूसल का क्या डर बाधाओं से क्या घबराना
ऊँट किस करवट बैठता है : परिणाम में अनिश्चितता होना।
एक पंथ दो काज : एक काम से दोहरा लाभ/एक तरकीब से दोकार्य करना/एक साधन से दो कार्य करना।
एक अनार सौ बीमार : वस्तु कम, चाहने वाले अधिक/एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी
एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है : एक की बुराई से साथी भी बदनाम होते हैं।
एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं : दो प्रशासक एक ही जगह एक साथ शासन नहीं कर सकते।
एक हाथ से ताली नहीं बजती: लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं।
एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा : बुरे से और अधिक बुरा होना/एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना।
कागज की नाव नहीं चलती : बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती।
काला अक्षर भैंस बराबर: बिल्कुल निरक्षर होना।
कंगाली मेंआटा गीला : संकट पर संकट आना।
कोयले की दलाली में हाथ काले : बुरे काम का परिणाम भी बुरा होता है/ दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं।
का वर्षा जब कृषि सुखानी : अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है।
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा : अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना/इधर-उधर से सामग्री जुटा कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना।
कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर : एक-दूसरे के काम आना परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
काबुल में क्या गधे नहीं होते : मूर्ख सब जगह मिलते हैं।
कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता : कहने से जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता।
कोउ नृप होउ हमें का हानि : अपने काम से मतलब रखना।
कौवा चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल : दूसरों के अनधिकार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना।
कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना : परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं।
करले सो काम भजले सो राम: एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना
काज परै कछु और है, काज कछु और सरै : दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुँह फेर लेते हैं।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया : अधिक परिश्रम से कम लाभ होना
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है : स्पर्धावश काम करना/साथी को देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है।
खग जाने खग ही की भाषा : मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात समझता है।
खिसियानी बिल्ली खम्भा खोंसे: शक्तिशाली पर वश न चलने के कारण कमजोर पर क्रोध करना
गागर में सागर भरना : थोड़े में बहुत कुछ कह देना
गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर हो गये : चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान होना
गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके लिए अधिक प्रयत्नशील होना
गुड़ खाए और गुलगुलों से परहेज : झूठा ढोंग रचना
गाँव का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध : अपने स्थान पर सम्मान नहीं होता।
गरीब तेरे तीन नाम-झूठा, पापी, बेईमान : गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं। निर्धनता सदैव अपमानित होती है।
गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे: प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों ।
गंगा गये गंगादास यमुना गये यमुनादास: अवसरवादी होना
गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास की वस्तु को दूर खोजना
गरजते बादल बरसते नहीं : कहने वाले (शोरमचाने वाले) कुछ करते नहीं
गुरु कीजै जान, पानी पीवै छान : अच्छी तरह समझ बूझकर काम करना
घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं : सबकी एक सी स्थिति का होना/सभी समान रूप से खोखले हैं।
घोड़ा घास से दोस्ती करे तो क्या खाये : मजदूरी लेने में संकोच कैसा ?
घर का भेदी लंका ढाहे : घरेलू शत्रु प्रबल होता है।
घर की मुर्गी दाल बराबर : अधिक परिचय से सम्मान कम/घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना
घर बैठे गंगा आना : बिना प्रयत्न के लाभ, सफलता मिलना
घर मैं नहीं दाने बुढि़या चली भुनाने : झूठा दिखावा करना
घर आये नाग न पूजै, बाँबी उसकी पूजन जाय : अवसर का लाभ न उठाकर खोज में जाना
घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध : विद्वान का अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सम्मान/परिचितकी अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर
चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए: बहुत कंजूस होना
चलती का नाम गाड़ी : काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते हैं।
चंदन की चुटकी भली गाड़ी : अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली
चार दिन की चाँदनी फिर : सुख का समय थोड़ा ही अँधेरी रात होता है।
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता।
चिराग तले अँधेरा : दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना
चींटी के पर निकलना : बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का, नष्ट होना
चील के घोंसले में माँस कहाँ?: भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है
चुपड़ी और दो-दो : लाभ में लाभ होना
चोरी का माल मोरी में : बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है
चोर की दाढ़ी में तिनका : अपराधी का सशंकित होनाअपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है।
चोर-चोर मौसेरे भाई : दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते हैं एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना
छछुंदर के सिर में चमेली का तेल : अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना
छोटे मुँह बड़ीबात : हैसियत से अधिक बातें करना
जहाँ काम आवै सुई का करै तरवारि : छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है।
जल में रहकर मगर से बैर : बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं
जब तक साँस तब तक आस : जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना
जंगल में मोर नाचा किसने देखा : दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की कद्र होती है। गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी : मातृभूमि का महत्त्व स्वर्ग से भी बढ़कर है।
जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहाँ क्या सवेरा नहीं होता : किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता नहीं है।
जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि : कवि दूरकी बात सोचता है सीमातीत कल्पना करना
जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई : जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे
जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी : भावनानुकूल(प्राप्ति का होना) औरों को देखना
जान बची और लाखों पाये : प्राण सबसे प्रिय होते हैं।
जाको राखे साइयाँ मारि सके न कोय : ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर किसका, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
जिस थाली मेंखाये उसी में छेद करना : विश्वासघात करना। भलाई करने वाले का ही बुरा करना। कृतघ्न होना
जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्तिशाली की विजय होती है
जिन खोजा तिन पाइयाँ : प्रयत्न करने वाले को सफलता/गहरे पानी पैठ लाभ अवश्य मिलता है।
जो ताको काँटा बुवै ताहि बोय तू फूल भी : अपना बुरा करने वालों के साथ भलाई का व्यवहार करो
जादू वही जो सिर चढ़कर बोलेः उपाय वही अच्छा जो कारगर हो
झटपट की घानी आधा तेल : जल्दबाजी का काम खराब हीआधा पानी होता है।
झूठ कहे सो लड्डू खाय साँच कहे सो मारा जाय : आजकल झूठे का बोल बाला है।
जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै : समयानुसार कार्य करना।
टके का सौदा नौ टका विदाई: साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
टेढ़ी उँगली किये बिना घी नहीं निकलता : सीधेपन से काम नहीं (चलता) निकलता।
टके की हाँडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली : थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना।
डूबते को तिनके का सहारा : संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है।
ढाक के तीन पात : सदा एक सी स्थिति बने रहना
ढोल में पोल : बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।
तीन लोक से मथुरा न्यारी : सबसे अलग विचार बनाये रखना
तीर नहीं तो तुक्का ही सही : पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना।
तू डाल-डाल मैं पात-पात : चालाक से चालाकी से पेश आना/ एक से बढ़कर एक चालाक होना
तेल देखो तेल की धार देखो : नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो।
तेली का तेल जले मशालची का दिल जले : खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे।
तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता : अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना/झूठा दिखावा करना।
तीन बुलाए तेरह आये : अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना।
तीन कनौजिये तेरह चूल्हे : व्यर्थ की नुक्ता-चीनी करना। ढोंग करना।
थोथा चना बाजे घना : गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगेंमारता है/आडम्बर करता है।
दूध का दूध पानी का पानी : सही सही न्याय करना।
दमड़ी की हाँडी भी ठोक बजाकर लेते हैं : छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं।
दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते : मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते।
दाल भात में मूसल चंद : किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।
दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम : संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना।
दूध का जला छाछ को फूँक फूँक कर पीता है : एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है।
दूर के ढोल सुहाने लगते हैं : दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं /दूर से ही वस्तु काअच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना
दैव दैवआलसी पुकारा : आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का : किधर का भी न रहना न इधर का न उधर का
न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी : ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके/बहाने बनाना।
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी: झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
नक्कार खाने में तूती की आवाज : अराजकता में सुनवाई न होना/बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।
न सावन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी तंग हालत रहना
नाच न जाने आँगन टेढ़ा : अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष ढूँढ़ना।
नाम बड़े और दर्शन खोटे : बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक।
नीम हकीम खतरे जान, नीम मुल्ला खतरे ईमान : अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।
नेकी और पूछ-पूछ : भलाई करने में भला पूछना क्या?
नेकी कर कुए में डाल : भलाई कर भूल जाना चाहिये।
नौ नगद, न तेरह उधार: भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभअच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्त्व देना।
नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से कार्य का होना
नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली : बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना
पढ़े पर गुने नहीं: अनुभवहीन होना।
पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह विधना का खेल : शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना।
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं : परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।
पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती : सभी समान नहीं हो सकते।
प्रभुता पाय काहि मद नाहीं : अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।
पानी में रहकर मगर से बैर : शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।
प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाय : छोटा आदमी बड़े पद पर पहुँचकर इतराकर चलता है।
फटा मन और फटा दूध फिर : एक बार मतभेद होने पर पुनःनहीं मिलता। मेल नहीं हो सकता।
बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं : कभी न कभी सबका भाग्योदय होता है।
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के महत्त्व को आँक नहीं सकता।
बद अच्छा, बदनाम बुरा: कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी : जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है
बावन तोले पाव रत्ती : बिल्कुल ठीक या सही सही होना
बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाजः बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना
बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूँ स्वयं : खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकरअलग रहना।
बापू भला न भैया, सबसे बड़ा रुपया : आजकल पैसा ही सब कुछ है।
बिल्ली के भाग छींका टूटना : संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना।
बिन माँगे मोती मिले माँगे : भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा मिले न भीख से नहीं।
बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती: प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता।
बैठे से बेगार भली : खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा।
बोया पेड़ बबूल का आम : बुरे कर्म कर अच्छे फल की कहाँ से खाए इच्छा करना व्यर्थ है।
भई गति साँप छछूंदर जैसी : दुविधा में पड़ना।
भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन, तेल, लकड़ी : गृहस्थी के जंजाल में फंसना
भूखे भजन न होय गोपाला : भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
भागते भूतकी लंगोट भली : हाथ पड़े सोई लेना जो बच जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा।
भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय : मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
बिच्छू का मंत्र न जाने साँप के बिल में हाथ डाले : योग्यता के अभाव में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना।
मन चंगा तो कटौती में गंगा : मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।
मरता क्या न करता : मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है।
मानो तो देव नहीं तो पत्थर : विश्वास फलदायक होता है।
मान न मान मैं तैरा मेहमान : जबरदस्ती गले पड़ना।
मार के आगे भूत भागता है : दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।
मियाँ बीबी राजी तो क्या करे गा काजी ? : यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है ?
मुख में राम बगल में छुरी : ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।
मेरी बिल्ली मुझ से ही म्याऊँ : आश्रयदाता का ही विरोध करना
मेंढ़की को जुकाम होना: नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत: हतोत्साहित होने पर असफलता व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है।
यथा राजा तथा प्रजा : जैसा स्वामी वैसा सेवक
यथा नाम तथा गुण : नाम के अनुसार गुण का होना।
यह मुँह और मसूर की दाल : योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना
मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन: मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।
रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई: सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना/टेकन छोड़ना।
रंग में भंग पड़ना : आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।
राम नाम जपना, पराया माल अपना : मक्कारी करना।
रोग का घर खाँसी, झगड़े का घर हाँसी : हँसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती है।
रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना: प्रतिदिन कमाकर खाना रोज कमाना रोज खा जाना।
लकड़ी के बल बन्दरी नाचे : भयवश ही कार्य संभव है।
लम्बा टीका मधुरी बानी: पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं।दगेबाजी की यही निशानी
लातों के भूत बातों से नहीं मानते : नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं।
लोहे को लोहा ही काटता है : बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।
वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत: विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है।
विधि कर लिखा को मेटनहारा : भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
विनाश काले विपरीत बुद्धि : विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
शबरी के बेर : प्रेममय तुच्छ भेंट
शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती है : जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है
शुभस्य शीघ्रम : शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
शठे शाठ्यं समाचरेत : दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये।
साँच को आँच नहीं : सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।
सब धान बाईस पंसेरी : अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणीऔर मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।
सब दिन होत न एक समान : जीवन में सुख-दुःख आते रहते हैं, क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।
सैइयाँ भये को तवाल अब काहे का डर : अपनों के उच्चपद पर होने से बुरे कार्य बे हिचक करना।
समरथ को नहीं दोष गुसाईं : गलती होने पर भी सामथ्र्यवान को कोई कुछ नहीं कहता।
सावन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
साँप मर जाये और लाठी न टूटे : सुविधापू र्वक कार्य होना/बिना हानि के कार्य का बन जाना।
सावन के अंधे को हरा ही सूझता है: अपने समान सभी कोहरासमझना।
सीधी अँगुली घी नहीं निकलता: सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
सिर मुंडाते ही ओले पड़ना : कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।
सोने में सुगन्ध : अच्छे में औरअच्छा।
सौ सुनार की एक लुहार की : सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।
सूप बोले तो बोले छलनी भी बोले : दोषी का बोलना ठीक नहीं।
हथेली पर दही नहीं जमता : हर कार्य के होने में समय लगता है
हथेली पर सरसों नहीं उगती : कार्य के अनुसार समय भी लगता है।
हल्दी लगे न फिटकरी रंग : आसानी से काम बन जाना चोखा आ जाय कम खर्च में अच्छा कार्य।
हाथ कंगन को आरसी क्या : प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : कपटपूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करेकुछ/कथनी व करनी में अन्तर।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात : महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन मेंही नजर आ जाते हैं।
हाथ सुमरिनी बगल कतरनी : कपटपूर्ण व्यवहार करना।