●गुप्तकाल आर्थिक उपयोगिता के आधार पर भूमि:-
@ क्षेत्र - कृषि करने योग्य भूमि |
@ वास्तु - वास करने योग्य भूमि |
@ चारागाह - पशुओँ के चारा योग्य भूमि |
@ खिल्य - ऐसी भूमि जो जोतने योग्य नहीँ होती थी |
@ अप्रहत - ऐसी भूमि जो जंगली होती थी |
● चोल काल मेँ भूमि के प्रकार:-
@ वेल्लनवगाई - गैर ब्राह्मण किसान स्वामी की भूमि |
@ पल्लिच्चंदम - जैन संस्थानोँ को दान दी गई भूमि |
@ ब्रह्मदेय - ब्रह्मणोँ को उपहार मेँ दी गई भूमि |
@ शालाभोग - किसी विधालय के रखरखाव की भूमि |
@ देवदान/तिरुनमटडक्कनी - मंदिर को दि गई भूमि |
● मौर्यकाल मेँ भूमि के प्रकार:-
@ सीता भूमि - सरकारी भूमि को "सीता भूमि" कहते थे |
@ अदेवमातृक - बिना वर्षा के अच्छी खेती होने वाली भूमि को |
● सल्तनतकाल मेँ भूमि के प्रकार :-
@ उश्र - मुसलमानोँ से लिया जाने वाला भूमि कर |
@ खालसा - पूर्णत: केन्द्र के नियंत्रण मेँ रहने वाली भूमी |
विजयनगर - संस्थापक हरिहर व बुक्का:-
@ उंबलि - गाँव मेँ विशेष सेवाओँ के बदले दी जाने वाली लगानमुक्त भूमि |
@ रत्त कोड़गे - युद्ध के समय मरने वाले सैनिक के परिवार को दी गई भूमि |
@ कुट्टगि - ब्रह्मण , मंदिर के बड़े भूस्वामी जो स्वंय कृषि नहीँ करते थे , किसानो को पट्टे पर देते थे |
● भूमिकर के विभाजन, मुगल साम्राज्य मेँ भूमि तीन वर्गो मे:-
@ खालसा भूमि - प्रत्यक्ष रूप से बादशाह के नियंत्रण मेँ |
@ जागीर भूमि - तनख्वाह के बदले दी जाने वाली भूमि |
@ मदद-ए-माश/मिल्क/सयूरगल - अनुदान मेँ दी गई लगानमुक्त भूमि |
दहसाला/टोडरमल बन्दोबस्त:-
@ पोलज - इसमेँ नियमित रुप से खेती होती थी |
@ परती - एक या दो वर्ष के अन्तराल पर खेती |
@ चाचर - तीन से चार वर्ष के अन्तराल पर खेती |
@ बंजर -खेती योग्य भूमि नही थी , तथा लगान नही वसूला जाता था |
Sunday, 25 June 2017
भूमि
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