Tuesday, 9 October 2018

पटना कलम शैली

# पटना_कलम_शैली :-
# पटना_कलम ’या # इंडो_ब्रिटिश_शैली ’ का विकास भारत की लघु चित्रकला शैली और ब्रिटिश शैली के संयोग से अंग्रेजों के संरक्षण में हुआ। इसमें व्यक्ति चित्रों की प्रधानता थी और इस शैली में उकेरे गये चित्र आम जीवन की त्रासदियों के बीच से उभरते थे।
पटना कलम शैली स्वतंत्र रूप से दुनिया की पहली ऐसी कला शैली थी जिसने आम लोगों और उनकी जिंदगी को कैनवस पर जगह दी। # वाटर_कलर पर आधारित इस शैली की शुरुआत करीब 1760 के आसपास मुगल दरबार और ब्रिटिश दरबार में होती है। मुगल बादशाह अकबर के दरबार के दो कलाकारों # नोहर और # मनोहर ने इसकी शुरुआत की थी। बाद में उनके शिष्य पटना में आकर इस शैली में कई प्रयोग किये और आम लोगों की जीवनशैली पर कलाकृतियां बनाईं। इस शैली का तेजी से विकास हुआ और चारों ओर इसकी प्रसिद्धि फैल गई। मध्य अठारहवीं शताब्दी में चित्रकला के तीन स्कूल थे – मुगल, आग्लो-इंडियन और पहाड़ी। लेकिन पटना कलम ने इन सबके बीच तेजी से जगह बना ली। यही शैली बाद में इंडो-ब्रिटिश शैली के नाम से जानी जाने लगी।
मुगल साम्राज्य के पतन की अवस्था में शाही दरबार में कलाकारों को प्रश्रय नहीं मिल पाता था। इस कारण इनका पलायन अन्य क्षेत्रों में होने लगा था। इसी क्रम में 1760 के लगभग पलायित चित्रकार तत्कालीन राजधानी ‘पाटलिपुत्र वापस आ गये। इन पलायित चित्रकारों ने राजधानी के लोदी कटरा, मुगलपुरा दीवान मोहल्ला, मच्छरहट्टा तथा नित्यानंद का कुंआ क्षेत्र में तथा कुछ अन्य चित्रकारों ने आरा तथा दानापुर में बसकर चित्रकला के क्षेत्रीय रूप को विकसित किया। यह चित्रकला शैली ही ‘पटना कलम’ या ‘पटना शैली’ कही जाती है। पटना कलम के चित्र लघु चित्रों की श्रेणी में आते हैं, जिन्हें अधिकतर # कागज और कहीं-कहीं
# हाथी_दांत पर बनाया गया है।
सामान्यत: इस शैली में चित्रकारों ने व्यक्ति विशेष, पर्व-त्योहार, उत्सव तथा जीव-जन्तुओं को महत्व दिया। इस शैली में ब्रश से ही तस्वीर बनाने और रंगने का काम किया गया है। अधिकांशत: # गहरे_भूरे , # गहरे_लाल ,
# हल्का_पीला और # गहरे_नीले रंगों का प्रयोग किया गया है। इस शैली के प्रमुख चित्रकार # सेवक_राम ,
# हुलास_लाल , # जयराम , # शिवदयाल_लाल आदि हैं। चूंकि इस शैली के अधिकांश चित्रकार पुरुष हैं, इसलिए इसे
# पुरुषों_की_चित्रशैली भी कहा जाता है।
मुगलोत्तर काल पटना में हांथी दांत की चित्रकारी फली-फूली और काफी विख्यात हुई। लाल चंद्र और गोपाल चंद्र इसके दो प्रसिद्ध चित्रकार थे जिन्हें बनारस के महाराजा ईश्वरी नारायण सिंह ने अपने यहां जगह दी। पटना में इसके महारथी थे दल्लूलाल। पटना शैली की शबीहें तैयार करने में इनका योगदान उल्लेखनीय है।
ब्रिटिश काल के अंत तक यह शैली भी लगभग अंत के करीब पहुची मिलती है। श्यामलानंद और राधेमोहन प्रसाद इसी शैली के कलाकार थे। # राधेमोहन_प्रसाद ने ही बाद में # पटना_आर्ट_कॉलेज की नींव रखी थी, जो कई दशकों से देश में कला-गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र है। # ईश्वरी_प्रसाद_वर्मा भारत में पटना कलम शैली के अंतिम चित्रकार थे। करीब डेढ़ दशक पहले उनका देहांत हो गया और उनके साथ ही पटना कलम शैली भी खत्म हो गयी। उनकी पचास से ज्यादा कलाकृतिया आर्ट कॉलेज में देखी जा सकती हैं।

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