हिन्दी लोकोक्तियाँ
जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे : जिसकी जो काम होता है वही उसे कर सकता है। प्रयोग -वो कंप्यूटर साइंस का इंजीनयर है उसे खेत में फावड़ा चलाने के लिए भेज दिया गया तभी एकगांव के आदमी ने उसकी बेरुखी कार्य प्रणाली को देख के कहा की जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे ..
जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे : जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।
जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा : जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते.
जिसके राम धनी, उसे कौन कमी : जो भगवान के भरोसे रहता है,उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.
जिसके हाथ डोई (करछी) उसका सब कोई : सब लोग धनवान का साथ देते हैं और उसकी खुशामद करते हैं.
जिसे पिया चाहे वही सुहागिन : जिस पर मालिक की कृपा होती हैउसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है।
जी कहो जी कहलाओ : यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग तुम्हारा भी आदर करेंगे.
जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है : कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया : यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये.
जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध : झूठ मुठ का दिखावा करना प्रयोग-कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं.
जी ही से जहान है : यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए.
जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग : जब कोई कठिन परिश्रम करे और उसका आनंद दूसरा उठावे तब कहते हैं, प्रयोग-गरीब आदमी परिश्रम करते हैं और पूँजीपति उससे लाभ उठाते हैं ये तो वही बात हो गई .-जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग
जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती : साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता. प्रयोग-एक बार फेल हो जाने से पूरा जीवन अंधकार में नही रखा जाता है
जेठ के भरोसे पेट : जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं.
जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार : संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है।
जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास : जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो जाता है।
जैसा कन भर वैसा मन भर : थोड़ी-सी चीज की जाँच करने से पता चला जाता है कि राशि कैसी है।
जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे : जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए.
जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी : जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा.
जैसा देश वैसा वेश : जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए.
जैसा मुँह वैसा तमाचा : जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश : जैसा समय आ पड़े उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिए.
जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट : समय और परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए.
जैसी तेरी तोमरी वैसे मेरे गीत : जैसी कोई मजदूरी देगा, वैसा ही उसका काम होगा.
जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश : निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है।
जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम,-जैसे को जैसा मिलना प्रयोग- जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है।
दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम -जैसे को जैसा मिलना प्रयोग-जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है।
जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार : जैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं.
जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच,
पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच -जो जैसा होता है उसका मेल वैसों से ही होता है.
जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : जिस व्यक्ति पर जितनी अधिक विपत्ति पड़ी रहती है उतना ही अधिक वह सुख का आनंद पाता है।
जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की : रोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है।
जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन,
बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन :-चाहे गंवार पढ़-लिख ले तिस पर भी उसमें तीन गुणों का अभाव पाया जाता है। बातचीत करना, चाल-ढाल और बैठकबाजी.
जो गुड़ खाय वही कान छिदावे : जो आनंद लेता हो वही परिश्रम भी करे और कष्ट भी उठावे.
जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाए : जो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए.
जो टट्टू जीते संग्राम, तो क्यों खरचैं तुरकी दाम : यदि छोटे आदमियों से काम चल जाता तो बड़े लोगों को कौन पूछता.
जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है : जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है।
जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट : यदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए.
जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवे : जो परिश्रम करता है उसे लाभ होता है, आलसी को केवल हानि ही हानि होती है।
जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए : जो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते.
जो बोले सो कुंडा खोले : यदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपाजाये.
जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में : जो सुखअपने घर में मिलता है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकता.
जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई : जोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं.
जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ : गैरिक वस्त्र पहनने से ही कोई जोगी नहीं हो जाता.
जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान : बड़ों की लड़ाई मेंगरीबों की हानि होती है।
जोरू चिकनी मियाँ मजूर : पति-पत्नी के रूप में विषमता हो, पत्नी तो सुन्दर हो परन्तु पति निर्धन और कुरूप हो.
जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी : स्त्री धन चाहती है औरमाता अपने पुत्र का स्वास्थ्य चाहती है। स्त्री यह देखना चाहती है कि मेरे पति ने कितना रुपया कमाया. माता यह देखती है कि मेरा पुत्र भूखा तो नहीं है।
जोरू न जांता, अल्लाह मियां से नाता : जो संसार में अकेला हो, जिसके कोई न हो.
ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय : जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा.
ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े : ज्यों-ज्यों आमदनी बढ़े, त्यों-त्यों कंजूसी करे.
ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध : जब कोई व्यक्तिकिसी दोषी पुरुष के दोष को बतलाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है।
झगड़े की तीन जड़, जन, जमीन, जर : स्त्री, पृथ्वी और धन इन्हीं तीनों के कारण संसार में लड़ाई-झगड़े हुआ करते हैं.
झट मँगनी पट ब्याह : किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति.
झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी : जल्दी का काम अच्छा नहीं होता.
झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर : छोटी जगह में छोटे आदमी बड़े समझे जाते हैं.
झूठ के पांव नहीं होते : झूठा आदमी बहस में नहीं ठहरता, उसे हार माननी होती है।
झूठ बोलने में सरफ़ा क्या : झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता.
झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए : झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे.
टंटा विष की बेल है : झगड़ा करने से बहुत हानि होती है।
टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायकाः
टका सर्वत्र पूज्यन्ते,बिन टका टकटकायते :
संसार में सभी कर्म धन से होते हैं,बिना धन के कोई काम नहीं होता.
टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में : धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है।
टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा : मूर्ख को दंड देने की आवश्यकता पड़ती है और बुद्धिमानों के लिए इशारा काफी होता है।
टाट का लंगोटा नवाब से यारी : निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास.
टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए : ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो.
टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे : जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है।
ठग मारे अनजान, बनिया मारे जान : ठग अनजान आदमियों को ठगता है, परन्तु बनिया जान-पहचान वालों को ठगता है।
ठुक-ठुक सोनार की, एक चोट लोहार की : जब कोई निर्बल मनुष्य किसी बलवान् व्यक्ति से बार-बार छेड़खानी करता है।
ठुमकी गैया सदा कलोर : नाटी गाय सदा बछिया ही जान पड़ती है। नाटा आदमी सदा लड़का ही जान पड़ता है।
ठेस लगे बुद्धि बढ़े : हानि सहकर मनुष्य बुद्धिमान होता है।
डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ : नाम के विपरीत गुण होने पर.
डायन को भी दामाद प्यारा : दुष्ट स्त्र्िायाँ भी दामाद को प्यार करती हैं.
डूबते को तिनके का सहारा : विपत्त्िा में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।
डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई : थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना.
डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार : जब कोई बिना बुलाए कहीं जाने को तैयार हो.
ढाक के वही तीन पात : सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं.
ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ : जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान् माना जाता है।
ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै : यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी.
अपना रख, पराया चख : अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना
अपनी करनी पार उतरनी : स्वयं का परिश्रम ही काम आता है।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता : अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है।
अधजल गगरी छलकत जाय : ओछा आदमी अधिक इतराता है।
अंधों में काना राजा : मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है।
अंधे के हाथ बटेर लगना : अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोगसे अच्छी वस्तु मिलना।
अंधा पीसे कुत्ता खाय : मूर्खौं की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं। असावधानी से अयोग्य को लाभ।
अब पछताये होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत : अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं।
अन्धे के आगे रोवै अपने नैना खावैं : निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है : अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान बन जाता है।
अन्धेरनगरी चैपट राजा : प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें : बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना।
अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।
अपना हाथ जगन्नाथ : अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है।
अपनी-अपनी डपली सबकाअपना-अपना राग : तालमेल का अभाव/अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव
अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय : स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है।
अंत भला तो सब भला: कार्य का अन्तिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता है।
आ बैल मुझे मार: जानबूझ कर मुसीबत में फंसना
आम के आम गुठली के दाम : हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ
आँख का अंधा नाम नयन सुखः गुणों के विपरीत नाम होना।
आगे कुआँ पीछे खाई : दोनों/सब ओर से विपत्ति में फँसना
आप भला जग भला : अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है।
आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास: उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना।
आधा तीतर आधा बटेर: अनमेल मिश्रण/बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो।
इन तिलोंमें तेल नहीं : किसी लाभ की आशा न होना।
आठ कनौजिए नौ चूल्हे: फूट होना।
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना।
उल्टे बाँस बरेली को : विपरीत कार्य या आचरण करना
ऊधो का न लेना, न माधो का देना : किसी से कोई मतलब न रखना/सबसे अलग।
ऊँची दुकान फीका पकवान : वास्तविकता से अधिक दिखावा। दिखावा ही दिखावा। केवल बाहरी दिखावा।
ऊँट के मुँह में जीरा : आवश्यकता की नगण्य पूर्ति
ऊखली में सिर दिया तो : जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो मूसल का क्या डर बाधाओं से क्या घबराना
ऊँट किस करवट बैठता है : परिणाम में अनिश्चितता होना।
एक पंथ दो काज : एक काम से दोहरा लाभ/एक तरकीब से दोकार्य करना/एक साधन से दो कार्य करना।
एक अनार सौ बीमार : वस्तु कम, चाहने वाले अधिक/एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी
एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है : एक की बुराई से साथी भी बदनाम होते हैं।
एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं : दो प्रशासक एक ही जगह एक साथ शासन नहीं कर सकते।
एक हाथ से ताली नहीं बजती: लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं।
एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा : बुरे से और अधिक बुरा होना/एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना।
कागज की नाव नहीं चलती : बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती।
काला अक्षर भैंस बराबर: बिल्कुल निरक्षर होना।
कंगाली मेंआटा गीला : संकट पर संकट आना।
कोयले की दलाली में हाथ काले : बुरे काम का परिणाम भी बुरा होता है/ दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं।
का वर्षा जब कृषि सुखानी : अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है।
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा : अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना/इधर-उधर से सामग्री जुटा कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना।
कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर : एक-दूसरे के काम आना परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
काबुल में क्या गधे नहीं होते : मूर्ख सब जगह मिलते हैं।
कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता : कहने से जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता।
कोउ नृप होउ हमें का हानि : अपने काम से मतलब रखना।
कौवा चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल : दूसरों के अनधिकार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना।
कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना : परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं।
करले सो काम भजले सो राम: एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना
काज परै कछु और है, काज कछु और सरै : दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुँह फेर लेते हैं।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया : अधिक परिश्रम से कम लाभ होना
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है : स्पर्धावश काम करना/साथी को देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है।
खग जाने खग ही की भाषा : मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात समझता है।
खिसियानी बिल्ली खम्भा खोंसे: शक्तिशाली पर वश न चलने के कारण कमजोर पर क्रोध करना
गागर में सागर भरना : थोड़े में बहुत कुछ कह देना
गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर हो गये : चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान होना
गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके लिए अधिक प्रयत्नशील होना
गुड़ खाए और गुलगुलों से परहेज : झूठा ढोंग रचना
गाँव का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध : अपने स्थान पर सम्मान नहीं होता।
गरीब तेरे तीन नाम-झूठा, पापी, बेईमान : गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं। निर्धनता सदैव अपमानित होती है।
गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे: प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों ।
गंगा गये गंगादास यमुना गये यमुनादास: अवसरवादी होना
गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास की वस्तु को दूर खोजना
गरजते बादल बरसते नहीं : कहने वाले (शोरमचाने वाले) कुछ करते नहीं
गुरु कीजै जान, पानी पीवै छान : अच्छी तरह समझ बूझकर काम करना
घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं : सबकी एक सी स्थिति का होना/सभी समान रूप से खोखले हैं।
घोड़ा घास से दोस्ती करे तो क्या खाये : मजदूरी लेने में संकोच कैसा ?
घर का भेदी लंका ढाहे : घरेलू शत्रु प्रबल होता है।
घर की मुर्गी दाल बराबर : अधिक परिचय से सम्मान कम/घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना
घर बैठे गंगा आना : बिना प्रयत्न के लाभ, सफलता मिलना
घर मैं नहीं दाने बुढि़या चली भुनाने : झूठा दिखावा करना
घर आये नाग न पूजै, बाँबी उसकी पूजन जाय : अवसर का लाभ न उठाकर खोज में जाना
घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध : विद्वान का अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सम्मान/परिचितकी अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर
चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए: बहुत कंजूस होना
चलती का नाम गाड़ी : काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते हैं।
चंदन की चुटकी भली गाड़ी : अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली
चार दिन की चाँदनी फिर : सुख का समय थोड़ा ही अँधेरी रात होता है।
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता।
चिराग तले अँधेरा : दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना
चींटी के पर निकलना : बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का, नष्ट होना
चील के घोंसले में माँस कहाँ?: भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है
चुपड़ी और दो-दो : लाभ में लाभ होना
चोरी का माल मोरी में : बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है
चोर की दाढ़ी में तिनका : अपराधी का सशंकित होनाअपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है।
चोर-चोर मौसेरे भाई : दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते हैं एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना
छछुंदर के सिर में चमेली का तेल : अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना
छोटे मुँह बड़ीबात : हैसियत से अधिक बातें करना
जहाँ काम आवै सुई का करै तरवारि : छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है।
जल में रहकर मगर से बैर : बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं
जब तक साँस तब तक आस : जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना
जंगल में मोर नाचा किसने देखा : दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की कद्र होती है। गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी : मातृभूमि का महत्त्व स्वर्ग से भी बढ़कर है।
जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहाँ क्या सवेरा नहीं होता : किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता नहीं है।
जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि : कवि दूरकी बात सोचता है सीमातीत कल्पना करना
जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई : जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे
जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी : भावनानुकूल(प्राप्ति का होना) औरों को देखना
जान बची और लाखों पाये : प्राण सबसे प्रिय होते हैं।
जाको राखे साइयाँ मारि सके न कोय : ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर किसका, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
जिस थाली मेंखाये उसी में छेद करना : विश्वासघात करना। भलाई करने वाले का ही बुरा करना। कृतघ्न होना
जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्तिशाली की विजय होती है
जिन खोजा तिन पाइयाँ : प्रयत्न करने वाले को सफलता/गहरे पानी पैठ लाभ अवश्य मिलता है।
जो ताको काँटा बुवै ताहि बोय तू फूल भी : अपना बुरा करने वालों के साथ भलाई का व्यवहार करो
जादू वही जो सिर चढ़कर बोलेः उपाय वही अच्छा जो कारगर हो
झटपट की घानी आधा तेल : जल्दबाजी का काम खराब हीआधा पानी होता है।
झूठ कहे सो लड्डू खाय साँच कहे सो मारा जाय : आजकल झूठे का बोल बाला है।
जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै : समयानुसार कार्य करना।
टके का सौदा नौ टका विदाई: साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
टेढ़ी उँगली किये बिना घी नहीं निकलता : सीधेपन से काम नहीं (चलता) निकलता।
टके की हाँडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली : थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना।
डूबते को तिनके का सहारा : संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है।
ढाक के तीन पात : सदा एक सी स्थिति बने रहना
ढोल में पोल : बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।
तीन लोक से मथुरा न्यारी : सबसे अलग विचार बनाये रखना
तीर नहीं तो तुक्का ही सही : पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना।
तू डाल-डाल मैं पात-पात : चालाक से चालाकी से पेश आना/ एक से बढ़कर एक चालाक होना
तेल देखो तेल की धार देखो : नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो।
तेली का तेल जले मशालची का दिल जले : खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे।
तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता : अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना/झूठा दिखावा करना।
तीन बुलाए तेरह आये : अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना।
तीन कनौजिये तेरह चूल्हे : व्यर्थ की नुक्ता-चीनी करना। ढोंग करना।
थोथा चना बाजे घना : गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगेंमारता है/आडम्बर करता है।
दूध का दूध पानी का पानी : सही सही न्याय करना।
दमड़ी की हाँडी भी ठोक बजाकर लेते हैं : छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं।
दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते : मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते।
दाल भात में मूसल चंद : किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।
दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम : संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना।
दूध का जला छाछ को फूँक फूँक कर पीता है : एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है।
दूर के ढोल सुहाने लगते हैं : दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं /दूर से ही वस्तु काअच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना
दैव दैवआलसी पुकारा : आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का : किधर का भी न रहना न इधर का न उधर का
न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी : ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके/बहाने बनाना।
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी: झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
नक्कार खाने में तूती की आवाज : अराजकता में सुनवाई न होना/बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।
न सावन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी तंग हालत रहना
नाच न जाने आँगन टेढ़ा : अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष ढूँढ़ना।
नाम बड़े और दर्शन खोटे : बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक।
नीम हकीम खतरे जान, नीम मुल्ला खतरे ईमान : अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।
नेकी और पूछ-पूछ : भलाई करने में भला पूछना क्या?
नेकी कर कुए में डाल : भलाई कर भूल जाना चाहिये।
नौ नगद, न तेरह उधार: भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभअच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्त्व देना।
नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से कार्य का होना
नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली : बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना
पढ़े पर गुने नहीं: अनुभवहीन होना।
पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह विधना का खेल : शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना।
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं : परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।
पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती : सभी समान नहीं हो सकते।
प्रभुता पाय काहि मद नाहीं : अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।
पानी में रहकर मगर से बैर : शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।
प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाय : छोटा आदमी बड़े पद पर पहुँचकर इतराकर चलता है।
फटा मन और फटा दूध फिर : एक बार मतभेद होने पर पुनःनहीं मिलता। मेल नहीं हो सकता।
बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं : कभी न कभी सबका भाग्योदय होता है।
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के महत्त्व को आँक नहीं सकता।
बद अच्छा, बदनाम बुरा: कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी : जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है
बावन तोले पाव रत्ती : बिल्कुल ठीक या सही सही होना
बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाजः बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना
बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूँ स्वयं : खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकरअलग रहना।
बापू भला न भैया, सबसे बड़ा रुपया : आजकल पैसा ही सब कुछ है।
बिल्ली के भाग छींका टूटना : संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना।
बिन माँगे मोती मिले माँगे : भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा मिले न भीख से नहीं।
बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती: प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता।
बैठे से बेगार भली : खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा।
बोया पेड़ बबूल का आम : बुरे कर्म कर अच्छे फल की कहाँ से खाए इच्छा करना व्यर्थ है।
भई गति साँप छछूंदर जैसी : दुविधा में पड़ना।
भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन, तेल, लकड़ी : गृहस्थी के जंजाल में फंसना
भूखे भजन न होय गोपाला : भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
भागते भूतकी लंगोट भली : हाथ पड़े सोई लेना जो बच जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा।
भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय : मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
बिच्छू का मंत्र न जाने साँप के बिल में हाथ डाले : योग्यता के अभाव में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना।
मन चंगा तो कटौती में गंगा : मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।
मरता क्या न करता : मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है।
मानो तो देव नहीं तो पत्थर : विश्वास फलदायक होता है।
मान न मान मैं तैरा मेहमान : जबरदस्ती गले पड़ना।
मार के आगे भूत भागता है : दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।
मियाँ बीबी राजी तो क्या करे गा काजी ? : यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है ?
मुख में राम बगल में छुरी : ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।
मेरी बिल्ली मुझ से ही म्याऊँ : आश्रयदाता का ही विरोध करना
मेंढ़की को जुकाम होना: नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत: हतोत्साहित होने पर असफलता व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है।
यथा राजा तथा प्रजा : जैसा स्वामी वैसा सेवक
यथा नाम तथा गुण : नाम के अनुसार गुण का होना।
यह मुँह और मसूर की दाल : योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना
मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन: मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।
रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई: सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना/टेकन छोड़ना।
रंग में भंग पड़ना : आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।
राम नाम जपना, पराया माल अपना : मक्कारी करना।
रोग का घर खाँसी, झगड़े का घर हाँसी : हँसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती है।
रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना: प्रतिदिन कमाकर खाना रोज कमाना रोज खा जाना।
लकड़ी के बल बन्दरी नाचे : भयवश ही कार्य संभव है।
लम्बा टीका मधुरी बानी: पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं।दगेबाजी की यही निशानी
लातों के भूत बातों से नहीं मानते : नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं।
लोहे को लोहा ही काटता है : बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।
वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत: विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है।
विधि कर लिखा को मेटनहारा : भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
विनाश काले विपरीत बुद्धि : विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
शबरी के बेर : प्रेममय तुच्छ भेंट
शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती है : जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है
शुभस्य शीघ्रम : शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
शठे शाठ्यं समाचरेत : दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये।
साँच को आँच नहीं : सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।
सब धान बाईस पंसेरी : अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणीऔर मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।
सब दिन होत न एक समान : जीवन में सुख-दुःख आते रहते हैं, क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।
सैइयाँ भये को तवाल अब काहे का डर : अपनों के उच्चपद पर होने से बुरे कार्य बे हिचक करना।
समरथ को नहीं दोष गुसाईं : गलती होने पर भी सामथ्र्यवान को कोई कुछ नहीं कहता।
सावन सूखा न भादों हरा : सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
साँप मर जाये और लाठी न टूटे : सुविधापू र्वक कार्य होना/बिना हानि के कार्य का बन जाना।
सावन के अंधे को हरा ही सूझता है: अपने समान सभी कोहरासमझना।
सीधी अँगुली घी नहीं निकलता: सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
सिर मुंडाते ही ओले पड़ना : कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।
सोने में सुगन्ध : अच्छे में औरअच्छा।
सौ सुनार की एक लुहार की : सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।
सूप बोले तो बोले छलनी भी बोले : दोषी का बोलना ठीक नहीं।
हथेली पर दही नहीं जमता : हर कार्य के होने में समय लगता है
हथेली पर सरसों नहीं उगती : कार्य के अनुसार समय भी लगता है।
हल्दी लगे न फिटकरी रंग : आसानी से काम बन जाना चोखा आ जाय कम खर्च में अच्छा कार्य।
हाथ कंगन को आरसी क्या : प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : कपटपूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करेकुछ/कथनी व करनी में अन्तर।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात : महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन मेंही नजर आ जाते हैं।
हाथ सुमरिनी बगल कतरनी : कपटपूर्ण व्यवहार करना।