नदियों को परस्पर जोड़ना- इस परियोजना के अंदर जेसा की नाम से
ही पता चलता है देश की सभी नदियों को आपस में जोड़ा जाए जिस
से की नदियों में जल राशी के अनुपात को सुनिश्चित किया जा सके!
इस योजना को नदी जोड़ो योजना का नाम दिया गया है।
नदी जोड़ो परियोजना- प्रस्तावित $ 120 अरब के अनुमानित खर्च
की नदी जोड़ो परियोजना को दो हिस्सों में बाँट कर अमल में
लाया जाएगा। एक दक्षिण में स्तित्त नदियों को जोड़ना और
दूसरा हिमालय की नदियों को जोड़ना। इस परियोजना में 40 बांध
30 नहरे प्रस्तावित है। 14 उत्तर भारत में जिसमे कोसी -घाघरा,
कोसी-मेछ, घाघरा-यमुना, गंडक-गंगा, यमुना , शारदा आदि है।
दक्षिण में 16 जिन्हें दक्षिण जल छेत्र बना कर जोड़ा जाना है,
इसमें महानदी और गोदावरी को पेन्नार, कृष्णा, वेग्गाई और कावेरी से
जोड़ा जाएगा। पछिम के तटीय हिस्सों में बहने वाली नदियों को पूर्व
की और मोड़ा जाएगा इस तट से जुडी तापी नदी के दक्षिण भाग
को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है।
केरल और कर्नाटक की पशिम की और बहने
वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में जोड़ी जाएगी। यमुना और
दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ा जाना इस
योजना का हिस्सा है। हिमालय छेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल
को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल ने
गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों पर विशाल
जलाशय बनाने की योजना है ताकि वर्षा जल एकत्र हो और उत्तर
प्रदेश बिहार और असम को बाड से निज़ात मिल सके इन
जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इस छेत्र में
कोसी घाघरा गंडक साबरमती शारदा फरक्का और दामोदर
नदियों को गंगा यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा। करीब 13500
k.m लम्बी ये नदिया भारत के सम्पूर्ण मैदानी छेत्रो में
मनुष्यों और जीव जगत के लिए प्रकृति का वरदान बनी हुई है।
कृषि योग्य कुल 1411 लाख हेक्टयेर भूमि में से 546 लाख
हेक्टेयर भूमि इन्ही नदियों की बदोलत सिंचित होती है।
यदि नदिया जुड़ जाती है तो सिंचित रकबा ही बढ़ेगा।
योजना के प्रभाव - नदियों को जोड़ने की यह योजना अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का एक मह्त्वकंशी कार्यक्रम है। भारत जेसे भोगोलिक विविधता वाले देश में पानी हर जगह समान रूप से उपलब्ध नही है। उतर पूर्व की नदियों में काफी पानी होता है और अक्सर वहा बाड़ जेसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। जबकि उतर भारत की नदियों में पानी लगातार घटता जा रहा है अगर नदियों को जोड़ा जाता है तो पानी की कमी वाले प्रेदेशो में किसानो को पर्याप्त पानी मिलेगा। एक अनुमान के अनुसार 2050 तक सिंचाई क्षमता 16 करोड़ हेक्टयेर तक पहुंच जाएगी। जबकि पारम्परिक रूप से 14 करोड़ हेक्टयेर भूमि को ही पानी मिल पाएगा। साथ ही नदियों से 34 गीगा बाइट बिजली बनाई जा सकेगी। यह योजना केवल भारत में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में सबसे बड़ी परियोजना होगी। परन्तु लाभ के साथ हानिया भी है इस से विस्थापन का अंदेशा भी है। नदियों के किनारे बड़े पैमाने पर उल्ट पुलट होगी इन जल क्षेत्रो की इकोलॉजी पर भी खतरे का अंदेशा है, अंदाज़ा है की हजार से ज्यादा गाँव डूबेंगे, पांच लाख लोग विश्थापित होंगे इस तरह के जलप्लावन से विस्थापन ही नही होता बल्कि इसके भुत सरे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष प्रभाव भी है, अनेक किन्तु परन्तु भी है जिनका निराकरण आवयश्क है। देश के भीतर राज्यों की तथा पड़ोसी देशो के साथ सामरिक मुश्किलें भी है। बांग्लादेश,भूटान और नेपाल इस योजना को लेकर आशंकित है। इन्हें डर है की नदियों की इस लड़ी से तैयार जल प्रवाह उपर स्ट्रीम में मोसमी या पर्यावर्णीय विनाश ल सकता है। अभी तक इन पड़ोसियों को भरोसे में लेन की जोशिश नही की गयी है।
वर्तमान परिस्थिति - 19 वी शताब्दी के मध्य से नदियों को परस्पर जोड़ने की योजना पहली बार बने गयी थी। उसके बाद लगभग एक शताब्दी बीत गयी जब यह विचार पुन्ह प्रस्तावित किया गया। K.L. RAO ने 1960 में गंगा कावेरी नहर का सुझाव दिया था। बाद में 70 के दशक में उन्होंने राष्टीय जल ग्रिड का प्रस्ताव रखा था। प्रस्तावित योजना का विचार राजग सरकार के समय आया था और अक्टूबर 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वाजपयी जी ने उस साल भीषण सूखे की पृष्ठभूमि में इस परियोजना के लिए एक कार्यबल का गतं किया था। 2004 के अनुसार मुख्य नदियों को 2016 तक जोड़ने के लिए पांच लाख करोड़ रुपयों की आवश्यकता होगी। आज 2014 में इसकी लागत कई गुना बढ़ गयी होगी। आज परियोजना को हाल यह है कि इसे विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में डाल दिया गया है
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