भारत में मुग़ल स्थापत्य कला- मध्य काल में भारतीय स्थापत्य कला का विकास वस्तुत: हिन्दू और मुस्लिम दोनों जातियों की सम्मिलित प्रतिभा के कारन हुआ। कुछ विद्वानों ने मध्य कालीन स्थापत्य कला शेली को पाठान, सरासिन अथवा इस्लामिक शेली के नाम से पुकारा है, जो युक्तिसंगत नहीं है। वस्तुत: इस शेली को इंडो इस्लामिक शेली की संज्ञा से विभूषित करना ही उपयुक्त होगा क्यूकि इसमें हम भारतीय तथा इस्लामिक दोनों शॆलियो का सुंदर समन्वय पाते हैं।
भारत वर्ष में जब इस्लाम का प्रवेश हुआ, इस्लाम के अनुयायी इस शेली को भी अपने साथ लाये परन्तु कुछ कारणों से इस शेली का स्वतंत्र विकास नही हो पाया। दुसरे शब्दों में मुसलमानों को भारत में प्रचलित प्राचीन भारतीय स्थापत्य शेलीयो से सामंजस्य कर निर्माण कार्य करने पड़े। भारत में पहले से ही कही अधिक उन्नत ब्राह्मण,जैन,बोद्ध स्थापत्य शेलिया प्रचलित थी जिस शेली को हम इन्डो इस्लामी शेली के नाम से जानते है वः वास्तव में भारतीय एवम इस्लामिक शेलियो का सम्मिश्रण ही हैं। मुग़ल काल इंडो इस्लामिक स्थापत्य कला शेली की पराकाष्टा का युग मन जाता है।
पर्सी ब्राउन ने मुग़ल काल को भारतीय वास्तुकला का 'ग्रीष्म काल' माना हैं, जो प्रकाश एवम उर्वरा का प्रतीक माना जाता हैं।
स्मिथ ने मुगलकालीन वास्तुकला को कला की रानी कहा है।
मुग़ल स्थापत्य कला का काल मुख्य रूप से 1526 ईस्वी से लेकर 1857 ईस्वी तक मन जाता हैं। मुग़ल स्थापत्य कला में फारस,तुर्की,मध्य एशिया,गुजरात,बंगाल,जोनपुर आदि स्थानों की शेलियो का अनोखा मिश्रण हुआ था। मुग़ल काल में पहली बार पत्थर के अलावा प्लास्टर एवम पच्चीकारी का प्रयोग किया गया। सजावट के लिए मार्बल पर जवाहरात एवम कीमती पत्थर की जडावत का प्रयोग, पथरों को काटकर फूल पत्ते, बेल बूटे एवम गुम्बदों तथा बुर्जों को कलश से सजाया जाता था।
इस्लामी एवम भारतीय शेलियो की विशेताए तथा उनका एक दुसरे पर प्रभाव-- इस्लामी स्थापत्य कला की विशष्टिता गुम्बंद, ऊँची ऊँची मीनारे,मेहराब तथा डांटे थी और भारतीय शिल्पकला की विशेषता चोरस छत,छोटे खम्बे नुकीले मेहराब और तोंडे थी। सम्पूर्ण मध्य काल में भारतीय स्थापत्य कला ने अनेक तरीको से इस्लामी शेली को गहरे रूप से प्रभावित किया।
प्रथम मुसलमानों को भारत वर्ष में स्थानीय कारीगरों तथा शिल्पियों को भवनों के निर्माण हेतु नियुक्त करना पड़ा। इन लोगो को अपनों देशी स्थापत्य कला के रूप तथा पद्धति का स्पष्ट ज्ञान था। अत: उन्होंने जाने अनजाने रूप में इस्लामी इमारतो में अपनी स्थानीय शिल्प कला कारीगरी का समावेश कर दिया। वस्तुत: इन इमारतो को बनाने में विदेशी मष्तिष्क काम कर रहा था किन्तु हाथ भारतीयों का था। द्वितीय प्राय: सभी प्रारंभिक सुल्तानों ने धर्मान्धता के कारण हिन्दू और जैन मंदिरों को तोडा और उन्ही के मलबे से उन्होंने अपने महल मस्जिद और गुम्बदो का निर्माण करवाया। अत: उनके भवनों पर भारतीयता की छाप पड गयी। तृतीय , यद्यपि हिन्दू और मुसलमानों के भवनों में अनेक विभिन्तायें थी परन्तु कुछ समानताये भी थी। अत: थोडा सा परिवर्तन कर भारतीय भवनों को इस्लामिक रूप दे दिया गया और इस तरह मध्य कालीन भवनों पर भारतीयता की छाप अंकित हो गयी।
बाबर (1526 ई.-1530 ई.) प्रथम मुग़ल सम्राट जिसका शासन काल काल बहुत कम था परन्तु स्थापत्य कला का उच्चकोटि का पारखी होने के कारण उसे भारतीय भवनों की समीक्षा करने का अवकाश मिल ही गया। उसे तुर्क एवम अफगान शासको द्वारा दिल्ली एवम आगरे की इमारते पसंद नहीं आई और वह के वास्तु कला के नमूने उसे निचे स्तर के प्रतीत हुए। किन्तु बाबर को ग्वालियर की शिल्प कला ने बहुत अधिक प्रभावित किया और उसने मानसिंह एवम विक्रमजीत के महलों को अद्वितीय बताया। संभव है अपने महलो के निर्माण में वह ग्वालियर शेली से प्रभावित हुआ।
बाबर ने आगरा,फतेहपुर सीकरी,बयाना,धोल पुर,ग्वालियर,अलीगढ आदि में भवन निर्माण हेतु सैकड़ो कारीगर नियुक्त किये थे। इन क्षेत्रो में उसने भवन निर्माण न करवा कर मंडप,स्नानागार,कूए,तालाब, फ़व्वारे ही बनवाए थे।
बाबर के द्वारा निर्मित केवल दो तीन भवन ही उपलब्ध है। ये भवन है पानीपत के काबुली बाग़ में स्थित मस्जिद दूसरी संभल की जमा मस्जिद और तीसरी आगरा के किले के अंदर निर्मित मस्जिद। उसके काल की एक अन्य मस्जिद अयोध्या में भी पाई गई है जिसे सम्राट की आज्ञा से अबुल बारी न बनवाया था। बाबर द्वारा निर्मित भवन शिल्प कला की दृष्टि से बहुत सामान्य है।
हुमायु (1530ई.-1540ई. और 1555ई.-1556ई.) हुमायु द्वारा निर्मित केवल दो मस्जिदों के अवशेष आज मौजूद है आगरा में निर्मित मस्जिद एवम दूसरी फतेहाबाद की विशाल एवम संतुलित मस्जिद। फतेहाबाद की मस्जिद का निर्माण 1540ई. में किया गया। इसमें फारसी शॆलि में प्रचलित प्रस्तर मीना कारी सज्जा का पर्योग किया गया सर्वप्रथम यह प्रयोग 15 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में बहमनी शाशको ने किया। उसने 1533ई. में दीनपनाह धरम का शरण स्थल नामक नगर की नीव डाली। इस नगर जिसे पुराना किला के नाम से जाना जाता है की दीवारे रोड़ी से निर्मित थी। इसे बाद में शेर शाह ने तुडवा दिया।
शेरशाह सूरी (1540ई.-1545ई.) इस्लाम शाह सूरी(1545ई.-1554ई.) शेर शाह ने हुमायूँ के द्वारा निर्मित दिन पनाह को नष्ट करवा कर उसके भग्नावशो पर पुराने किले का निर्माण करवाया। इनमे उसने एक मस्जिद भी बनवाई थी जो पुराने किले की मस्जिद अथवा किले ए कुहना मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध है। अकबर के शासन के पूर्व की इंडो मुस्लिम शिल्प कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना सहसा राम में झील केंद्र में एक ऊँचे टीले पे निर्मित शेरशाह का मकबरा है। बाहय निर्माण की दृष्टि से शेरशाह का मकबरा इस्लामी ढंग का बना हुआ है किन्तु इसका भीतरी भाग तोरणों था हिन्दू ढंग के खम्बो से सजा हुआ है। शेर शाह के उत्तराधिकारियो के शासन काल में किसी उल्लेखनीय भवन का निर्माण नहीं हो पाया।
अकबर (1556ई.-1605ई.) अकबर ने विभिन्न स्थानों की कारीगरी का उपयोग कर एक नूतन भारतीय अथवा राष्ट्रिय शॆलि का निर्माण किया और इस शेली में उसने आगरा फतेपुर सीकरी, लाहोर,इलाहबाद,अटक आदि विभिन्न स्थानों में अनेक दुर्ग,राजप्रसाद,भवन,मस्जिद,मकबरे आदि बनवाए। अकबर के शासन काल की पहली इमारत दिल्ली स्तिथ हुमायूँ का मकबरा है। इसका निर्माण हुमायूँ की विधवा पत्नी हाजी बेगम की देख रेख में हुआ था। यह 1569ई. में बनकर तॆयार हुआ। और इसमें फारसी व भारतीय कलाओ का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। भारत में निर्मित उभरी हुयी दोहरी गुम्बंद का यह पहला उदाहरण है। इसके बाद आगरे,लाहौर के किले का निर्माण हुआ। आगरे के लाल किले की दीवारे लगभग 70 फुट ऊँची है।तथा इसका घेराव डेढ़ मील(2.4 km) है। आगरे के किले में 2 मुख्य द्वार है जिनमे से एक पश्चिम की और दूसरा इस से छोटा अमर सिंह द्वार है। किले के पश्चिम द्वार को दिल्ली व हाथी द्वार के नाम से जाना जाता है क्योकि इसके मुख्य मेहरब पर दो हाथियों की आकृति उकेरी हुई है। इस किले के भीतर अकबर ने लगभग 500 इमारतों का निर्माण करवाया अकबर द्वारा निर्मित ये इमारते लाल बलुआ पत्थर की थी जिन्हें शाहजंहा ने तुडवा कर इसके स्थान पर संगमरमर की नई इमारतों का निर्माण करवाया। किले में अकबर द्वारा निर्मित सर्वाधिक महत्वपूर्ण इमारते जहाँगीरी महल एवम अकबरी महल है। इनके निर्माण में भी लाल पत्थरों का पर्योग किया गया है। जहाँगिरी महल अकबरी महल की अपेक्षा अधिक बड़ा एवम सुंदर है। जहाँगीरी महल हिन्दू डिजाइन का है और इसमें सजावट भी हिन्दू ढंग की है। इन कारणों से इसे सरलता से हिन्दू भवन कहा जा सकता है। आगरे किले की रूप रेखा ग्वालियर के किले से मिलती है जिसे मान सिंह ने बनवाया था।
लाहोर के किले का निर्माण भी लगभग आगरे के किले के निर्माण के समय ही हुआ था। दोनों किलों में समरूपता भी है, किन्तु लाहोर के किले की सजावट अपेक्षा कृत घनी है। इसके अतिरिक्त अकबर ने इलाहाबाद एवम आमेर में भी किले बनवाए।
फतेहपुर सीकरी (स्थापना 1569ई.) (1571ई.-1585ई. तक राजधानी रही) अकबर ने एक नयी राजधानी फतेपुर सीकरी का निर्माण करवाया। यहाँ भी उसने राजप्रसाद,बेगमों, शहजादों के महल कार्यालय आदि का निर्माण करवाया। सिकरी में सम्राट ने अनेक भवनों का निर्माण करवाया किन्तु इनमे मुहाफ़िज़ खाना,दीवाने आम,दीवाने ख़ास,खजाना महल,पञ्च महल,महारानी मरियम का महल,तुर्की सुल्ताना का महल,योधा बाई का महल और बीरबल का महल विशेष रूप से उल्लेखनीय है। अधिकांश इमारतो में हिन्दू मुस्लिम कलाओ का सुंदर समन्वय दृष्टिगोचर होता है। किन्तु इनमे हिन्दू शॆलि की प्रधानता है। इनमे से कुछ की सजावट जेसे दीवाने खास में लगे हुए खम्बो की शोभा बढ़ाने वाले तोड़े , पच महल और योद्धा बाई के महल में लगे हुए उमरे घंटे तथा जंजीर और मरियम के महल में पत्थरों पर खोदे गए पशुओ के चित्र आदि हिन्दू एवम जैन शेलीयों के है। किले के अंदर निर्मित जामा मस्जिद और उसका परवेश द्वार जिसे अकबर ने अपनी दक्षिण विजय के बाद नए सिरे से बनवाया, बुलंद दरवाजे के नाम से जाना जाता है। दरवाजे की ऊँचाई 134 फीट व सीढयो
की 72 फीट इस प्रकार यह 176 फीट ऊंचा है। सीकरी के निर्माण में 11 वर्ष लगे। बाद में सलीम चिश्ती की दरगाह आदि बने।
इसके अतिरिक्त अकबर ने मेरटा, आमेर में मस्जिद का निर्माण करवाया इलाहबाद में उसने 40 खम्बो का महल तथा सिकंदरा में अपने मकबरे की योजना तैयार की। अकबर के मकबरे का निर्माण 1613ई. में उसके पुत्र जहाँगीर ने करवाया।
जहाँगीर(1605ई.-1627ई.) - जहाँगीर के शासन काल में एतमादूद्दोला का मकबरा बनवाया। एतमादूद्दोला की ख्याति इसमें संगमरमर के उपर पच्चीकारी के कारन है
। यह सफ़ेद संगमरमर का बना हुआ है और इसमें कीमती पत्थर भी लगे हूए है। इस मकबरे का निर्माण सोलहसो ई. में नूरजहाँ ने करवाया। यह प्रथम ऐसी ईमारत है (मुग़ल काल) जो पूर्ण रूप से बेदाग़ सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है। सर्वप्रथम इस ईमारत में पित्रादूरा नाम का जड़ाऊ काम किया जडावत के कार्य का एक पहले का नमूना उदयपुर के गोलमंडल मंदिर में पाया जाता है। मकबरे के अन्दर निर्मित एतमादूद्दोला एवम उसकी पत्नी की कब्रे पीले रंग के कीमती पत्थर से निर्मित है।
सिकंदरे में अकबर के मकबरे का निर्माण कार्य यद्यपि अकबर के योजना के अनुरूप उसी के शासन काल में प्रारंभ किया गया। इसका समापन 1613ई. में जहाँगीर की देख रेख में हुआ। यह मकबरा चार बाग़ पद्धति के उद्यान में स्तिथ है। वर्गाकार योजना का यह मकबरा पांच तल ऊंचा है जिसका प्रतेक तल क्रमश: छोटा होकर इसे पिरामिड नुमा आकर देता है। अकबर की कब्र भवन से चारो और से घिरी है तथा ये ईंट और चुने के गारे से बनी है। उपरी मंजिल सफ़ेद संगमरमर तथा अन्य सम्पूर्ण मकबरा लाल बलुआ पत्थर का बना है। यह मकबरा 119 एकड में फैला हुआ है।ओरंगजेब के समय में जाट शासक रजा राम के नेतृत्व में जाटों ने अकबर की कब्र खोदकर इसकी अस्थियों को अग्नि में समर्पित कर दिया एवम मकबरे को नुकसान भी पहुँचाया।
जहाँगीर के शासन काल में अन्य उलेखनीय भवन लाहोर के निकट शाहदरा में स्तिथ उसका मकबरा है जिसका नक्शा व योजना उसने खुद तैयार किया था। इस मकबरे के उपर संगमरमर का एक मंडप था जिसे सिखों ने उतार लिया था। समाधी के भीतरी हिस्सों में संगमरमर की पच्चिकारो तथा चिकने और रंगीन सुंदर पल्स्तरो का पर्योग किया गया है।
शाहजहाँ (1627ई. -1658ई.) मुग़ल स्थापत्य कला के इतिहास में शहाजहां का शासन काल सर्वाधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस मुग़ल कालावधि में भारतीय वास्तुकला अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई। शाहजहाँ के शासन काल को अगर स्वर्ण युग कह कर पुकारा जाता है तो इसमें उसके द्वारा निर्मित भवनों का सर्वाधिक योगदान है। शाहजहाँ को उसकी इसी कला के प्रति अगाध प्रेम होने के कारण निर्माताओं का राजकुमार कहा जाता है। शाहजहाँ की देख रेख और उसके संगरक्षण में आगरा,लाहोर,दिल्ली,काबुल,कश्मीर,अजमेर,कंधार,अहमदाबाद आदि अनेक स्थानों में सफ़ेद संगमरमर के महल,मस्जिद,मंडप,मकबरें आदि का निर्माण किया गया। शाहजहाँ ने आगरे तथा लाहोर में अकबर के द्वारा लाल पत्थरों से निर्मित अनेक भवनों को नष्ट करवा कर उनके स्थान पर सफ़ेद संगमरमर के भवनों का निर्माण करवाया। आगरे के किले में सम्राट ने दीवाने आम, दीवाने खास, खास महल, शीश महल, मोती मस्जिद, मुसम्मन बुर्ज तथा अनेक बनावटों का निर्माण करवाया। दीवाने खास की सुन्दरता इसमें दोहरे खम्बों और सजावटों के कारन है। मुस्सन बुर्ज किले की लम्बी चोड़ी दिवार पर अप्सरा कुञ्ज के सामान शोभायमान है। मोती मज्सिद की कारीगरी मुग़ल कालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है।
1638 ई. में दिल्ली में सम्राट ने एक नये दुर्ग का निर्माण करवाया जो दिल्ली के लाल किले के नाम से प्रसिद्ध है। उसके भीतर एक नगर बसाया गया जिसका नाम शाहजहानाबाद रखा गया। दिल्ली के लाल किले के भीतर सफ़ेद संगमरमर की सुंदर इमारते बनवाई गयी जिनमे मोती महल, हीरा महल, रंग महल , दीवाने आम , दीवाने खास आदि उल्लेखनीय है। लाल किले में शाहजहाँ ने संगीत भवन अनेक दफ्तर था बाज़ार भी बनवाये। हर महल के सामने फूलों की क्यारियां एवं फव्वारे निर्मित किये गए। जिस से उनकी सुन्दरता में चार चाँद लग गये। सरे महल, जाली, खंबो,महराबों और चित्रों से सुसज्जित है। इन महलो के फर्श संग मरमर के बने हुए है। लाल किले में स्थित भवनों में रंग महल की शोभा अति न्यारी है। इसमें सुंदर फव्वारों की भी व्यवस्था की गयी। शाहजहाँ के द्वारा इसकी एक दिवार पर खुदवाया गया यह वाक्य " अगर धरती पर खिन स्वर्ग एवं आनंद है तो वह यहीं है"। बिलकुल सत्य प्रतीत होता है।
शाहजहाँ ने लाहोर के किले में 40 खम्बो का दीवाने आम, मुसलमान बुर्ज, शीश महल, ख्वाबगाह आदि का निर्माण करवाया। शाहजहाँ ने शाहजहानाबाद में प्रसिद्ध जमा मस्जिद का निर्माण करवाया। यह मस्जिद अपनी विशालता एवं सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। किन्तु कला की दृष्टि से उत्कृष्ट नही है।
शाहजहाँ द्वारा निर्मित ताजमहल सर्वाधिक विख्यात व महत्वपूर्ण समझा जाता है। कहा जाता है इसका निर्माण 1631 ई. से लेकर 1953 ई. तक हुआ। इस प्रकार ताजमहल निर्माण में 22 वर्ष व 9 करोड रूपये लगे। संभवत ताजमहल की योजना उस्ताद अहमद लाहोरी द्वारा तैयार की गयी तथा इसके निर्माण हेतु देश विदेश से कारीगर नियुक्त किये गए। पर्सी ब्राउन के मत में ताजमहल का निर्माण प्राय मुसलमान शिल्पकारो द्वारा ही हुआ था किन्तु इसकी चित्रकारी सामान्यत: हिन्दू कलाकारों के द्वारा की गयी थी। और पेत्रादुरा जेसी कठिन पच्चीकारी कन्नोज के हिन्दू कलाकारों को सोपी गयी। ताज की रूपरेखा प्रधान रूप से फ़ारसी ही है, किन्तु कुछ अंश में हिन्दू शिल्प कला तथा हिन्दू साजो सज्जा का सम्मिश्रण भी हम इए पाते है। फिर भी इसके डिजाइन को पूर्णत: मोलिक नहीं खा जा सकता। अनुमानत: यह बीजापुर के सुल्तानों के द्वारा निर्मित मकबरों एवम शेरशाह के मकबरे से बहुत अधिक प्रभावित है।
ओरंगजेब (1658 ई.-1707ई.) ओरंगजेब अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण सभी कलाओ का शत्रु बन बैठा था। ओरंगजेब ने किसी भी श्रेष्ट इमारत का निर्माण नहीं करवाया। उसने 1649ई. में दिल्ली की मोती मस्जिद के अधूरे कार्य को पूरा करवाया। 1674 ई. में लाहोर में बादशाही मस्जिद, 1678 ई. में ओरंगाबाद में "बीबी का मकबरा", अपनी पत्नी रमिया दोरानी की स्मृति में बनवाया। जो ताजमहल की फूहड़ नक़ल है।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल स्थापत्य कला को पुन: पनपने का अवसर नहीं मिला और उतर मुग़ल कालीन सम्राटो के काल में जिन इमारतो का निर्माण किया वे बहुत निम्न कोटि की प्रतीत होती है तथा शिल्पकला का खोकला पन प्रगट करति है।
मुग़ल सामंतों, हिदू रजवाडो द्वारा निर्मित भवन- बाद के भवनों में जयपुर का हवा महल,बीजापुर का गोल गुमद,वृन्दावन का गोविन्द देव तथा मदन मोहन के मंदिर, गोवेर्धन का हमीर देव मंदिर, बुन्देल खंड में सोनागढ़ का जैन मंदिर, ग्वालियर का मान मंदिर, अमृतसर का सिख मंदिर एवं राजपुताना में हिन्दू शासकों द्वारा निर्मित मंदिर एवं भवन किले उल्लेखनीय है।
नष्ट की गयी इमारतों में, जिनका उल्लेख किया गया है। उनमें वीर सिंह बुंदेला द्वारा निर्मित ओरछा के मंदिर और महल , मथुरा के केशव रॉय का मंदिर तथा गोकुल वृन्दावन , हरिद्वार, प्रयाग(इलाहबाद), वाराणसी एवम अन्य हिन्दू तीर्थ स्थानों के अनेक अनेक मंदिर महत्वपूर्ण कहे जा सकते है।
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